मिथ्याचारी काँप जाएँ, ऐसी गर्जना करो

15-05-2023

मिथ्याचारी काँप जाएँ, ऐसी गर्जना करो

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 229, मई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

मिटकर मिलेंगे धूल में, 
कुचक्र सब गढ़े हुए; 
सिद्ध कब यहाँ हुए, 
मृषा असत् मढ़े हुए। 
 
जो ठान लो प्रचंड हो, 
तुम्हारा बल अनंत है; 
हे निडर! आगे बढ़ो, 
षड्यंत्र खंड खंड है। 
 
हे शूरवीर! हे बली!, 
समक्ष समर शेष है; 
हुंकार के दहाड़ दो, 
ये युद्ध अब विशेष है। 
 
रौंद दो असत्य को, 
अनीति, वर्जना करो; 
मिथ्याचारी काँप जाएँ, 
ऐसी गर्जना करो। 
 
मिटकर मिलेंगे धूल में, 
कुचक्र सब गढ़े हुए; 
सिद्ध कब यहाँ हुए, 
मृषा असत् मढ़े हुए। 

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