निःसंदेह पवित्र हो, तुम मेरे मित्र हो

15-02-2021

निःसंदेह पवित्र हो, तुम मेरे मित्र हो

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मेरा जो चरित्र है,
तुम उसी के चित्र हो;
निःसंदेह पवित्र हो,
तुम मेरे मित्र हो।
 
तुम्हीं हो शक्ति-साधना,
विश्वास की उपासना;
जीवन की सुगंध हो,
श्रेष्ठतम तुम इत्र हो;
निःसंदेह पवित्र हो,
तुम मेरे मित्र हो।
 
दर्शन हो मानों पर्व हो,
तुम्हीं तो मेरे गर्व हो;
हस्त मिले ही रहेंगे,
चाहे पथ विचित्र हो;
निःसंदेह पवित्र हो,
तुम मेरे मित्र हो।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
कविता - क्षणिका
कविता-मुक्तक
कहानी
खण्डकाव्य
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में