मैं बुझूँगा, ये तमस छँट जाए बस

15-11-2023

मैं बुझूँगा, ये तमस छँट जाए बस

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 241, नवम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

टिमटिमाती लौ को मेरी, 
देखकर ऊबती हुई, 
दुखती हुई आँखें तुम्हारी; 
अपकर्ष को अपमान को, 
हँसते हुए सहते हुए, 
विचलित हुई साँसें हमारी। 
प्रिये! तनिक सा धैर्य रख लो
मैं बुझूँगा, 
ये तमस छँट जाए बस; 
सवेरा हो जाए बस, 
मैं बुझूँगा। 

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