हँसती हुई आँखों में बेफ़िक्र सी नमी है

15-03-2024

हँसती हुई आँखों में बेफ़िक्र सी नमी है

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 249, मार्च द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

वो मौजूद हैं और उन्हीं की कमी है, 
मेरी हसीन मायूसियों की यही ज़मीं है। 
बड़ी ख़ुशनुमा है ये बारिश भी दर्द की, 
हँसती हुई आँखों में बेफ़िक्र सी नमी है। 

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