और हम जी सकेंगे जी भरकर

01-08-2023

और हम जी सकेंगे जी भरकर

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

शरीर को पार्थिव होना है, 
अंततः मुझे तुम्हें खोना है; 
कुछ भी नहीं बचेगा शेष॥
न ही मैं न ही मेरी बातें, 
न ही तुम न ही ये मुलाक़ातें; 
यादें भी नहीं बचेंगी, 
बस कुछ वक़्त लगेगा उन्हें मिटने में; 
आख़िर मिट ही जाएँगी, 
किसी को नहीं आएगी
मेरी तुम्हारी याद; 
काश तुम समझ पाते ये बात
कि ये ज़िन्दगी हमारी है, 
मेरी है तुम्हारी है; 
जितना जी सकें बस वही अपना है, 
शेष सब व्यर्थ सपना है; 
शरीर के पार्थिव होने से पहले, 
आभामय यौवन के खोने से पहले; 
कदाचित तुम समझ ही जाओगे, 
मेरे अंक में आनंदित होकर समाओगे; 
और हम जी सकेंगे जी भरकर, 
उस अंतिम क्षण अंतिम बिंदु तक, जहाँ
शरीर को पार्थिव होना है, 
अंततः मुझे तुम्हें खोना है। 

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