हवाएँ बहेंगी मगर शोर नहीं होगा

01-09-2025

हवाएँ बहेंगी मगर शोर नहीं होगा

कृषभो (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

ये आदत बड़ी आम सी है मेरी, 
दर्द सहते हुए, गुनगुनाने की, मुस्कराने की; 
बड़ा बे-हुस्न है, रो रो कर बहलने का हुनर, 
मुझे प्रैक्टिस नहीं है, मातम मनाने की। 
 
मेरे लिए ज़िन्दगी एक खेल है, जादू टोने जैसा, 
एक तिलिस्म, जिसे तोड़ता हुआ अय्यार हूँ मैं; 
इतना बुरा कुछ भी नहीं, कि मैं बुरा मान जाऊँ, 
और जो है, या होगा, उसके लिए तैयार हूँ मैं। 
 
मुझे हमेशा यही लगता है, 
कि मैं हालात बदल लूँगा; 
तुम्हारी चालें रोक दूँगा, 
और अपनी नई चल दूँगा। 
 
और तब, फ़िज़ा मेरे इशारों पे होगी, 
हवाएँ बहेंगी मगर शोर नहीं होगा; 
ज़र्रा भी नहीं बचेगा तुम्हारी सरकशी का, 
तुम रहोगे, मगर ज़ोर नहीं होगा। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

नज़्म
कविता
कविता - क्षणिका
कविता-मुक्तक
कहानी
खण्डकाव्य
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में