मशाल हूँ मैं, मेरा धर्म है रोशनी करना

01-12-2022

मशाल हूँ मैं, मेरा धर्म है रोशनी करना

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मशाल हूँ मैं, 
मेरा धर्म है
रोशनी करना; 
रास्ता दिखाना, 
जीवन
सुदर्शनी करना। 
आग लगने के
ज़िम्मेवार
तुम हो; 
यदि जल गया कुछ, 
गुनाहगार
तुम हो। 
मुझे
पकड़ कर
रखना; 
सहेज
कर
चलना। 
सब
तुम्हारे
हाथ था; 
मैं तो
सिर्फ़
साथ था। 
मुझे आरोपित कर, 
कदाचित
तुम कुछ न पा सकोगे; 
सँभालना सीखो मुझे, 
फिर से
रोशनी में नहा सकोगे। 
मशाल हूँ मैं, 
मेरा धर्म है
रोशनी करना . . .

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
कविता - क्षणिका
कविता-मुक्तक
कहानी
खण्डकाव्य
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में