मैंने सर्वस्व की तिलांजलि दी

15-12-2023

मैंने सर्वस्व की तिलांजलि दी

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

प्रेम की चादर ओढ़े मोह ऐसा, 
कि मैंने सर्वस्व की तिलांजलि दी; 
विष पीकर भी आस जीने की रही, 
कुछ ऐसे जीवन को श्रद्धांजलि दी। 
ये वज्र मेरा हृदय भी कैसा, आह! 
आघात, सहते हुए हँसता रहा; 
वेदना से नाता कुछ यूँ रहा संजय! 
कि ‘मैं ठीक हूँ’ यही कहता रहा। 
प्रेम की चादर ओढ़े मोह ऐसा, 
कि मैंने सर्वस्व की तिलांजलि दी . . . 

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