बिछड़ना अब मुमकिन नहीं 

01-12-2023

बिछड़ना अब मुमकिन नहीं 

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 242, दिसंबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

तुम्हारा मिलना, 
और आँखें न मिला पाना; 
हाथ थामना, लजाना, 
और हँसते चले जाना। 
तुम्हें स्पर्श करके, 
मेरा हाथ दिल से लगाना; 
तुमसे जुदा होना, 
चलना, रुकना फिर चले आना। 
ये एहसास ऐसी कशिश है
कि सँभलना अब मुमकिन नहीं, 
मिले हो ऐसे
कि बिछड़ना अब मुमकिन नहीं। 

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