प्रणाम! हे शक्ति स्वरूपिणी! सृष्टि स्वयं में लिए खड़ी हो

15-03-2024

प्रणाम! हे शक्ति स्वरूपिणी! सृष्टि स्वयं में लिए खड़ी हो

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 249, मार्च द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

तुम्हारे ही प्राण से सब सिंचित,
सर्वस्व में समाहित जीवन कड़ी हो;
प्रणाम! हे शक्ति स्वरूपिणी!
सृष्टि स्वयं में लिए खड़ी हो।
 
धरा पर धर्म को सहेजे,
वैष्णवी बनकर लड़ी हो;
प्रणाम! हे शक्ति स्वरूपिणी!
सृष्टि स्वयं में लिए खड़ी हो।
 
तुमसे विलग शिव शव है,
कदाचित ब्रह्म से भी बड़ी हो;
प्रणाम! हे शक्ति स्वरूपिणी!
सृष्टि स्वयं में लिए खड़ी हो।

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