समाजवाद मुखर हो, ऐसी गर्जना करो

15-05-2022

समाजवाद मुखर हो, ऐसी गर्जना करो

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

सत्ता बनी धृतराष्ट्र है, 
अनीति आज नीति है; 
प्रतिशोध द्वेष क्रोध की, 
जाने ये कैसी रीति है। 
 
माँ बहन की आबरू, 
रक्षक बने वो लुटते; 
घिघिया रहा ग़रीब है, 
दानव बने वो कूटते। 
 
पाप शिखर है चढ़ा, 
माँ भारती है काँपती; 
अधर में नौनिहाल हैं, 
भविष्य को है भाँपती। 
 
हे राष्ट्रपुत्र! सुन सको, 
तो सुन लो, माँ पुकारती; 
विकल्प शेष अब नहीं, 
है आत्मा ललकारती। 
 
जगो जगो उठो उठो, 
प्रचंड समर शेष है; 
हुंकार के दहाड़ दो, 
ये युद्ध अब विशेष है। 
 
समाजवाद मुखर हो, 
अनीति वर्जना करो; 
डोल जाये तख़्त, अब
ऐसी गर्जना करो।

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