प्रेम

संजय कवि ’श्री श्री’ (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

प्रेम में लीन होना,

प्रेम को अंगीकार करना;

तुम निर्भय होकर

नश्वरता स्वीकार करना।

 

ये प्रेम ही तो है,

जिसे तुम करने आये हो;

मही पे

घृणा पाप क्लेश को हरने आये हो।

 

प्रेम करो, बस प्रेम,

कभी तुम मर नहीं सकते;

शोक की अनुभूति

कभी तुम कर नहीं सकते।

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