गर्व की पतंग

01-06-2016

गर्व की पतंग

सुशील यादव

२१२२१ २१२२१

ग़ौर से देख, चेहरा समझ
आइने को, न आइना समझ

सीख लेना, सियासत का खेल
सादगी-संयम, अपना समझ

गर्व की, कब उड़ी कोई पतंग
बेरहम बहुत, आसमां समझ

शोर गलियों में, नाम दीवार
चार दिन ख़ुद को, फ़रिश्ता समझ

चाहतों को लुटा खुले हाथ
नेमत ख़ुदा यही, अता समझ

स्याह अँधेरा रौशन करे जो
ज्ञान को सर झुका 'दिया' समझ

रात हो, ज़ुल्म, ख़त्म होती है
घूमता पास, सिरफिरा समझ

लूटने वाले चल दिए लूट
शोर करना, कहाँ-कहाँ समझ

पेड़ की छाँव, बैठ तो 'सुशील'
सोच 'माजी', उसे तन्हा समझ

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
ग़ज़ल
नज़्म
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
पुस्तक समीक्षा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें