प्रेम

भीकम सिंह (अंक: 249, मार्च द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

सिर्फ़ सपना-सा
रह गया
तेरा प्यार, 
सिलसिला देकर। 
 
लौट जाता है
बार-बार
सिर्फ़, 
मुस्कान लेकर। 
 
देखता हूँ
इस बार लौटेगा क्या
मेरे हाथों की, 
लकीर लेकर। 
 
याद नहीं मुझे
किसलिए
रूठ गया है, 
ठिठकी-सी रात देकर। 

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