मेरे घर के नज़दीक मात्र छ्ह किलोमीटर पर एक गाँव है पोटियाकला। इस गाँव की ख़ासियत है कि यहाँ नाटक करने वाले पात्र भी मिल जाते हैं। लोक-कला के नाम से यहाँ हँसोड़ कलाकार शिव कुम्हार ‘दिया’ की क़रीब सत्तर साल पहले पैदाईश हुई थी। उनसे इंटरव्यू लेने का मौक़ा यूँ मिला कि वे धरने पर दिल्ली जाने की ज़िद मचाये बैठे थे, घर वालों की परेशानी बढ़ थी . . .!
मुझसे उनके घर वालों ने संपर्क किया, "आप ही समझा सकते हैं, वे रोज़ रट लगा रहे हैं मुझे दिल्ली भेजो . . .! मेरे किसान भाई आन्दोलन कर रहे हैं मुझे उनके साथ होना है।"
मैंने एक इंटरव्यू प्लान किया, लोकल मीडिया वालों से कहा, "कुम्हार जी किसानी के साथ, ‘दिया’ बनाते हैं, वे अच्छे कलाकार भी हैं ऊपर से आज के ज्वलंत टॉपिक यानी किसान भी हैं। पोटियाकला गाँव में उनकी पुश्तैनी पन्द्रह एकड़ ज़मीन भी है,आप चाहें तो उनके विचार जानने के लिए कभी गाँव आ सकते हैं।"
वे तत्काल राज़ी हो गए। मैंने उनको असल भूमिका से वाक़िफ़ किया, दरअसल शिव कुम्हार को अपने बुढ़ापे में राजनीति की सूझ रही है। वे किसान आन्दोलन में शरीक होकर अपने राज का प्रतिनिधित्व करना चाह रहे हैं। हमने शिव जी को समझाया, बड़े-बड़े किसान इस आन्दोलन में जूझ रहे हैं। सरकार से वार्ताओं का दौर जारी है। ऊपर से कोरोना– भूत का ख़ौफ़ भी; वैसे ही समझाया जैसे बचपन में माता बच्चों को ज़्यादा घूमने-फिरने पर पाबंदी लगाने के लिए ’अज्ञात बच्चा पकड़ने वालों’ का ज़िक्र करके डराती थी। ’देखो, कोरोना! महामारी की तरह दिल्ली के आसपास फैली है, तुम इस उम्र में उसकी चपेट में आये तो बचना मुश्किल हो जाएगा।’
मैंने कहा, "शिव जी आप चाहें तो आपका इंटरव्यू अरेंज कर सकता हूँ। आप इत्मीनान रखो आपका संदेश भी किसान आन्दोलन के लिए भारी होगा . . .!"
इंटरव्यू सार से आप रूबरू हों ....
"शिव जी आप बँटाधार चैनल के कर्णव गोंसाई से मुख़ातिब हैं . . . आप किस मुद्दे पर अपनी बात कहना चाहेंगे?"
"मैं देश के किसानों के साथ हूँ। उनकी माँग का समर्थन करता हूँ।"
"आप जानते हैं उनकी माँगें क्या हैं?"
"बिना जाने सोचिये, मेरे भीतर दिल्ली जाने की आग भला क्यों जलती . . .?"
"हो सकता है आप दिल्ली इस उम्र में महज़ इसलिए जा रहे हैं, जिससे सबका ध्यान आप की ओर आकर्षित हो। हमें ये नहीं भुलाना चाहिए की आप एक हास्य कलाकार रहे हैं। मौजूदा हालात में आपको काम मिलना शायद बंद हो गया हो . . ."
"देखिये . . . ये मुझ पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाएँ मत। मेरी कला और मेरी किसानी दोनों में अभी धार बाक़ी है। मैं इस उम्र में भी अपने खेतों में जाकर निदाई-गुड़ाई का काम कर लेता हूँ। हाँ, मानता हूँ हल जोतने के अब दिन नहीं रहे, तो क्या? ट्रैक्टर किराये पर मिला करता है।"
"शिव जी आपको दीगर किसानों की तरह कभी पेड़ में लटकने की बात सूझी . . .? सवाल ज़रा काल्पनिक सा है मगर अहम है। देखने में आता है कि किसान आजकल अपनी सहनशक्ति के अंतिम पड़ाव में बैठे हैं। उन्हें घटिया बीज, दोयम दर्जे का फ़र्टिलाइज़र, वह भी ऊँची क़ीमतों पर चिपकाया जा रहा है। बीमा वाले जब पैसा देने की बारी आती है तब बारीक़ अक्षरों में लिखे कंडिशन पढ़वा देते हैं। आपके साथ ऐसा कभी हुआ . . ."
"देखिये हमें उन किसानों के मद्देनज़र मत रखो जो मजबूरी में इस ज़हर सेवन, फाँसी लगाने को प्रवृत्त होते हैं। हम ठोस मुक़ाबला करने वालों में से हैं। ईंट से ईंट बजाने वालों में हमें जानिये। हमारे पास अपनी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। सरकार को सोते से जगा देंगे। यही जज़्बा हमें दिल्ली जाने के लिए प्रेरित कर रहा है।"
"आन्दोलनकारी सरकार की ज़िद को झुकाने में कामयाब होते नज़र नहीं आ रहे। अपनी बातें मनवाने के रास्ते उनको इस ठंड में जो तकलीफ़ हो रही है सो अलग!
"आपके पास कोई फ़ॉर्मूला है, जो सरकार और आन्दोलन के बीच कोई भूमिका निभा सके?"
"आप अब आये मुद्दे पर . . .
"यूँ तो हम देश की तरक़्क़ी के बाधक नहीं बनाना चाहते, वरना कहते कि, ’एक साल किसान अपनी ज़मीन पर कुछ भी न उगाये’ . . . बिलकुल बापू के सत्याग्रह की तरह . . . नमक कानून तोड़ना है तो आपको नामक बनाना आना चाहिए . . .
"और भी विकल्प हैं। बिचौलिए को घुसने से रोकने के लिए किसान आपसी भण्डारण क्षमता को मज़बूत करे या सरकार से माँग करे कि उनकी फ़सल का एक साल तक निशुल्क सुरक्षित भंडारण सुनिश्चित करे।
"आज हम आलू और प्याज़ को जिस दाम में ख़रीदने को मजबूर हैं, वह शासन की नीति और किसानी को दलाल-मुक्त न कर पाने की अक्षमता है।
"जयहिंद!"
सुशील यादव, न्यू आदर्श नगर जोन १ स्ट्रीट ३ दुर्ग छत्तीसगढ़ ::९४२६७६४५५२