अवसर

01-06-2021

अवसर

सुशील यादव (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

जो बरगद, पीपल, बूढ़े पिता के बारे में सोचता है
वो यक़ीनन मज़हब, ईमान, ख़ुदा के बारे  में सोचता है
 
डिगा सकता है वही शख़्स यहाँ, इंच-भर अंगद के पाँव
जो मुसीबत में पिसते हुए, इन्सां के बारे में सोचता है
 
बहाना  कौन चाहता है, गंगा में अपनों  की लाश को
तंग हाल आदमी कब,  कफ़न चिता के बारे में सोचता है
 
वो मयकदे में आख़िरी साँस तक, हो बेआबरू जी लेता
गिद्धों के बीच कौन, अस्मिता के बारे में सोचता है
 
लोगो ने बना दिया, आफ़त को, अवसरों का बाज़ार 
हर आदमी आमदनी फायदे के बारे में सोचता है

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