दुखती रग
दुखती कब तक
आख़िर उसे
मिला वो हमदर्द
जो बिन सुने
समझता था व्यथा
जीवन कथा
अनकही बारीक़ी
अकेलेपन की
सह, कह न पायी
जो वो किसी से
स्नेहिल अपनत्व
ज्यों मरहम
सुहात पहुँचाए
दुखती रग
नहीं अब दुखती
पा गयी वो राहत!
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