सावन आया
डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
बादल की गर्जन के संग
मौसम ने बदली जब करवट
कोयल ने फिर गीत सुनाया
बारिश का मौसम है आया
बंद आँख से भीगी फुहार से
बादलों के साथ भागता
उमड़ता घुमड़ता मन
माँ के आँगन में जब आया
यादों ने तन मन भिगाया
ख़ाली घर में देखो जैसे
बचपन की यादों के संग
सारी रौनक़ भर लाया
हरा घाघरा लाल चुनरिया
अल्हड़पन वो याद आया
झूले से फिर गिर ना जाना
माँ का चिल्लाना दूर
नेपथ्य से सुनाई आया
भीगोगी और छींकोगी
घर आ जाओ जल्दी से
पापा ने इशारे से बुलाया
खी खी करते हम सब
सखियों ने घर चलो
भागने का मन बनाया
पानी में भी दौड़ लगाकर
घर में जाकर पाँव थमाया
ऊधम मस्ती धमाचौकड़ी
यादों से तर होकर मन
स्मृतियों को सहेज कर
आँखों से सावन बरसाता
सूना आँगन छोड़ वही
वापस मेरे पास आया
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