ताक़तवर कौन?
डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
हाथी: जंगल के राजा, इंसान के मेहमान, और सरकार के लिए आँकड़े
बांधवगढ़ नेशनल पार्क, जो अपनी बाघों की गिनती में मशहूर है, आज 11 हाथियों की गिनती से शर्मिंदा है। लगता है, हाथियों ने जंगल में जीने का ठेका सरकार को दे रखा था, और बदले में सरकार ने ठेका शायद लापरवाही को।
“हाथियों की मौत पर सफ़ाई”
अधिकारी बोले, “हाथी जंगल का हिस्सा हैं, पर मरने का हक़ उन्होंने ख़ुद माँगा था। शायद भोजन ज़्यादा खा लिया होगा, या फिर इंसानों की आदतें सीख लीं।”
“भोजन या ज़हर?”
“जंगल में घास कम थी या किसी ने ज़हर मिलाया?”
“ये बात तो हाथी ही बता सकते थे, लेकिन अब वो चुप हैं।”
“टेक्नोलॉजी और टालमटोल?”
“ड्रोन तो लगाए हैं, लेकिन वो कैमरे सिर्फ़ बाघ गिनने के लिए सेट किए गए थे। हाथियों को गिनने का बजट अगली बार मिलेगा।”
“ज़िम्मेदारी का खेल“
पर्यावरण विभाग वन विभाग को ज़िम्मेदार ठहराता है, वन विभाग कहता है—“हमें मौसम की मार का दोष क्यों दिया जा रहा है?”
आख़िरकार, ज़िम्मेदारी मौसम पर डाल दी गई।
हाथी मर गए, प्रशासन निश्चिंत है। हम काग़ज़ों पर हाथी बचाने की योजनाएँ बनाते रहेंगे, और असलियत में उन्हें खोते रहेंगे। बांधवगढ़ का यह क़िस्सा केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि हमारी नीतियों पर एक गहरा कटाक्ष है।
हाथी भूल गए जंगल का मालिक कौन है! इंसान ने ये दिखा दिया, कौन सबसे बड़ा शिकार है।
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