नदी और नारी

15-05-2024

नदी और नारी

डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

नदी और नारी
दोनों में समानता भारी
उद्गम से निकल कर 
कच्ची मिट्टी की तरह
निर्झर निर्मल बहती जाती है
डगर ठिकाने का पता नहीं
मंज़िल पर पहुँच थोड़ा ठिठक जाती है। 
समाहित रहता है उसमें 
प्यार जज़्बात और समर्पण
सह जाती है कड़वाहट रूखापन तिरस्कार 
मुस्कुरा कर फिर आगे बढ़ जाती है। 
 कण कण को अपना समझती है। 
रिश्तों में उलझी गुत्थी सुलझाती 
अस्तित्व विहीन हो समुद्र में मिल जाती है। 
अभिलाषाओं को परे ताक़ पर रख
सबको लेकर साथ आगे बढ़ जाती है। 
कभी संकुचित, तो विशाल हृदय वाली
कभी रौद्र रूप तो कभी ममतामयी माँ बन जाती
जीवन दायनी जल प्रदायिनी 
तृप्त सभी को कर जाती
भयभीत नहीं चट्टानों से भी
मार्ग नया बना पाती!

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