पेट लवर पर होगी कार्यवाही

01-02-2024

पेट लवर पर होगी कार्यवाही

डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार (अंक: 246, फरवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

जैसे ही मैंने पढ़ा तो मैं बड़ी ख़ुश हो गई पेट लवर पर हो रही है, कार्रवाई। पेट लवर भी कई प्रकार की होते हैं।

यह तो निर्भर करता है कि, आप किस प्रकार के पेट लवर हैं।

प्रथम श्रेणी में तो वे पेट लवर आ जाते हैं भी आ जाते हैं। जिन्हें डोमिनोज।ज़ का पिज़्ज़ा, बर्गर, चाऊमीन, मोमोज, पास्ता पसंद है। अपने भारतीय बाज़ार पर क़ब्ज़ा कर रखा है। गर्म गर्म जलेबी पोहा . . . अब वह गर्म-गर्म जलेबी कुम्हला रही है गर्म-गर्म पोहा से निकल ने वाली भाप हाय साँस ही लेने लगी है . . .

बेचारे भारतीय जो गरम-गरम जलेबी, पोहा बेचा करते थे—उनके यहाँ बच्चे जाते ही नहीं है। मैकडोवल दो मिनट में आपको डिलीवरी कर देता है बच्चे कहते हैं, “समोसा खाने से बीमार हो जाते हैं।” ऐसा डॉक्टर कहता है पर क्या उन्हें पता है यह सब खाने से तो बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाती है। कम से कम पोहा, जलेबी, उपमा, ताज़ा बनता है। इडली ताज़ी बनती है। पर यह खाता कहाँ है कोई? स्वास्थ्य अच्छा रहता था और सबसे बड़ी बात भारतीयों को उद्योग मिलता था पर हमें तो भारत की जगह विदेशियों की चिंता है। उनका आर्थिक स्तर ऊँचा होना चाहिए। भूल जाते हैं कि भारत विश्व में जनसंख्या के स्तर पर प्रथम है यदि हम अपने भारतीयों को बढ़ावा देंगे, भारतीयों के रोज़गार धंधों को बढ़ावा देंगे तो यह इकोनामी हमारे भारत के उत्थान में सबसे आगे होगी और बड़ा सहारा बनेगी। पर कहाँ हमें तो चिंता है . . . विदेश की फिर मोटी-मोटी रक़म हम ख़र्च करके अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देंगे।

दूसरे प्रकार के पेट लवर बता देते हैं जिन्हें सोना पहनने का शौक़ होता है। उनका पेट ही नहीं भरता 20 किलो सोना तन पर लटका कर ख़ुश होते हैं।

तीसरे प्रकार के तीसरे प्रकार के रेत और बजरी के पेट लवर, पहाड़, नदियाँ, तालाब, कितनी तेज़ी से ख़ाली कर रहे हैं—कोई उनसे सीखे। पर्यावरण की सुरक्षा में इनका हाथ बहुत बड़ा है। सरकार को तालाबों को गहरीकरण करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती उत्खनन का काम यह तेज़ी से कर डालते हैं।

अगली प्रकार के पेट लवर से मिला दें यह पेट लवर ज़मीन ही खा डालते हैं। कल जो आपकी थी परसों वह उनकी हो जाती है। यहाँ तक कि सरकारी ज़मीन भी उनकी बन जाती है। झोपड़ियों की जगह बड़े-बड़े महल, दो माले और बिग बाज़ार खुल जाते हैं।

कुछ प्रकार के पेट लवर तो ऐसे हैं जिन्हें शरीर पर कपड़ा धारण करना ही बुरा लगता है। सारे समाज को बिगाड़ने में इनका श्रेय सबसे आगे है।

माँ को मॉम और पिता को डैड कहते हैं। शीत लहर और जानलेवा ठंड में भी शरीर पर कपड़े नहीं पहनते हैं। टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में भारतीय सभ्यता को तार-तार करके प्रस्तुत करते हैं।

सावित्रीबाई फुले पर क्यों नहीं बनाते हैं। बुंदेलखंड की महारानी झांसी पर बनाएँ सीरियल। रानी हाडा पर क्यों नहीं बनाते हैं सीरियल जिसने देश के ख़ातिर अपनी ख़ुद जान देकर अपने पति को कर्त्तव्य पथ से हटने के लिए रोका था। धन्य हो, एकता कपूर जो आप अवार्ड पा जाती है। समाज को सुधारने का ठेका आपने ही लिया है।

अगले प्रकार के पेट लवर बाइक चलाने वाले भी होते हैं सड़क पर गाड़ी दौड़ाने से रुकते नहीं है। महँगी गाड़ियाँ बच्चों को 10, 11 साल में ही पकड़ा दी जाती हैं परिवर्तन हो रहा है। एक्सीडेंट होते हैं चर्चा ना कर लेना इस बात की। चाहे काल के गाल में समा जाएँ।

कुछ पेट लवर घूसखोरी से ही पेट भरते हैं। जब तक उनके मुँह में वह घूसखोरी ना चली जाए पेट भरता ही नहीं चक्कर पर चक्कर लगवाते रहेंगे। जैसे ही घूसखोरी का निवाला मुँह में जाता है सारे काम सीधे होने लगते हैं।

पेट लवर वह भी होते हैं जो ज़रूरत को पूरा करने के लिए क़र्ज़ पर क़र्ज़ लिए चले जाते हैं। और एक दिन अपने आप को ख़ुद समाप्त कर लेते हैं। यह भी एक सच्चाई है और वास्तविकता भी आज आदमी अपनी सैलरी में गुज़ारा नहीं कर पा रहा है। और क़र्ज़ पर क़र्ज़ लिए चले जा रहा है। यह पेट लवर है। क्योंकि ने घर का पेट भरना है।

वास्तविक पेट लवर की बात कर लेते हैं। माता-पिता को रखने के लिए घर में कमरा नहीं है। बहन भाइयों के रिश्ते ख़त्म हो रहे हैं। पर कुत्ते को रखने के लिए बहुत बड़ा कमरा और आलीशान स्लीपवेल के गद्दे हैं। ए सी है। माँ-बाप को खिलाने के लिए दो रोटी नहीं है। पुराने ज़माने का पंखा है। पर साहब कुत्ते को खिलाने के लिए पेडी गिरी है

माँ बाप को देने के लिए कपड़े नहीं है, साबुन नहीं है। पर कुत्ते को नहलाने के लिए शैंपू और साबुन स्पेशल है।

महल्ले के बच्चों को काट ले तो आप कह देते हैं कि आपका बच्चा खेलने आ गया था। बच्चे नादान होते हैं बचपन खेल में ही बीतता है। आप इस तरह के पेट पाल लेते हैं जिसके कारण बच्चों की जान भी चली जाती है और आप कहते हैं सड़क पर भी ना खेलें तो जाए कहाँ? अगर बच्चा समझता होता तो वह आपके घर आता कि क्यों? पेट पालना बुरा नहीं है। पर अपनी मानवीय ज़िम्मेदारियाँ से भागना बुरा है।

सरकार का सराहनीय क़दम पेट पालने वालों के ख़िलाफ़ में कार्यवाही आज के लिए इतना ही!

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