अपराध की एक्सप्रेस: टिकट टू अमेरिका!!
डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
सोचिए, एक आदमी भारत से अमेरिका गया। सपना था डॉलर कमाने का, नाम कमाने का। लेकिन वहाँ जाकर डंकी ट्रेंड पकड़ लिया—मतलब चोरी-चकारी, ठगी या कोई और अपराध। अब भाईसाहब ने सोचा होगा कि अमेरिका में पुलिस बस फ़िल्मों में ही दौड़ती है, असल ज़िन्दगी में तो कोई हाथ भी नहीं लगाएगा!
पर जब हक़ीक़त सामने आई और पुलिस ने धर दबोचा, तब समझ आया कि यह हॉलीवुड की फ़िल्म नहीं, बल्कि असली ज़िन्दगी है। कोर्ट में पेशी हुई, जज ने कुछ साल जेल में डालने की सोची, मगर फिर अमेरिका सरकार ने सोचा—“अरे! यह तो बाहर का माल है, वापस भेज दो!”
अब बेचारे अपराधी महाशय को अमेरिका की जेल में पाँच-सात साल काटने का मौक़ा भी नहीं मिला। सीधे एयरपोर्ट पर चढ़ा दिया और कह दिया—“लो भैया, वापस अपने देश जाओ, वहाँ जो करना है करो!”
यह सजा है या सौग़ात?
सोचिए, अगर यही काम कोई अमेरिकी भारत में करता, तो क्या उसे ऐसे ही प्यार से विदा किया जाता? नहीं! पहले पाँच साल केस चलेगा, फिर जेल, फिर कोर्ट के चक्कर। लेकिन यहाँ तो “नो टेंशन, ओनली डिपोर्टेशन!”
अब यह लोग भारत लौटकर फिर से वही करेंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि “अमेरिका की जेल में फ़्री की रोटी नहीं मिलेगी, लेकिन वापसी की फ़्लाइट फ़्री में मिल सकती है!”
तो भाई, अगर अपराध करके भी आप बस वापस भेजे जा रहे हैं, तो इसे सज़ा मत समझिए, यह तो मुफ़्त की छुट्टी है! अगली बार जाने से पहले देख लीजिए—“कहीं यह ‘डंकी ट्रेंड’ आपको ‘टिकट टू अमेरिका’ की बजाय ‘टिकट टू इंडिया’ न बना दे!”
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