बस रह गई तन्हाई
डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
मिट्टी के घर
चूने की पुताई
गाय का रम्हाना
गोबर से लिपाई
चूल्हे से उठता धुआँ
ख़ुश्बू रोटी की आई
नीम के नीचे खटिया
अम्मा की चटाई
वो ठंडी हवा वो पुरवाई
नदिया का पानी
वह मंदिर की घंटी
छाछ की गिलसिया
गुड़ की डीगरिया
वो छूट गया वहीं
बस रह गई तन्हाई
शहर की धूल में
मैं सब भूल गया
पेट की आग ने
रिश्तों से की बेवफ़ाई
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