प्रार्थना
डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
एक है हम सब विश्व भी एक
धमनियों में बहे रक्त एक सा
जन्म मृत्यु में ना कोई भेद है।
बालपन किशोरावस्था बुढ़ापा
है उम्र के पड़ाव में समानता
वस्त्र बोली भाषा सिर्फ़ अलग
संस्कृति सीखने की है ललक
हो जाए कहीं दुर्घटना कभी
उठाते हैं हज़ारों हाथ तभी
कलुषित हो क्यों गया मन
ये हारने जीतने की होड़ है।
प्रचंड अग्नि में दहकता विश्व
शान्ति पैग़ाम कपोतों से
सुनो बचपन छीनने का हक़ नहीं
दंभी तुम क्या उन्हें दे रहे हो
दिशाहीन पथभ्रमित कर रहे
दोष सिर क्यूँ नहीं अब ले रहे
मिटा दी हस्तियाँ, बस्तियाँ
खंडहरों में दबी सिसकियाँ
छीन ली प्यार की थपकियाँ
प्रकृति ने कब रोकी हवाएँ
वर्षा ने कब नहीं भिगोया
सूरज देता उजाला सबको
चाँद विश्राम कराता जगको
उठ सँभल जा अभी वक़्त है।
उग्र रूप पृथ्वी ने अब धरा
जलमग्न, सूर्य का ताप बड़ा
भूसंखलन, भूकंप संकेत है
करबद्ध सभी से है प्रार्थना
मिटा वैमनस्य की सीमाएँ
एक विश्व, एक हो जाएँ हम
शान्ति पथ पर बढ़ा दो क़दम