अपने हक़ को जाने

01-09-2023

अपने हक़ को जाने

डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

वह माँ थी दो बेटों की
बुढ़ापे में ढूँढ़ते ढूँढ़ते
पास मेरे वो आई थी
बिना पूछे ही बयाँ करती
आँखें छल छला आईं थीं। 
ख़ुद के घर में ख़ुद रहने को
अधिकार माँगने आई थी। 
शब्दों के तीखे वाणों से
छलनी होकर आई थी। 
पति गुज़र गए थे प्यारे
छोड़ गए थे बेसहारे। 
दो वक़्त की रोटी के लाले
मिला दान में वो ही खा ले। 
जिन्हें खिलाया गोद में 
बन बैठे थे दुश्मन सारे। 
अपशब्दों की बौछार से
मर रही थी बिन मारे। 
दूध पिलाया बड़ा किया
वही उसे अब दुत्कारे। 
रही मालकिन जिस घर की
छीन लिए हक़ उसके सारे। 
सुधरेंगे न रो कर हालात 
माता अधिकारों को जाने। 
अपनी सम्पत्ति के हक़ को
वह जाने और पहचाने। 
करे जो सेवा उसे ही देना
मुट्ठी अपनी बंद ही रखना। 

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