मानव तुम कहलाते हो
डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
नारी के अपमान को तुम अपनी विजय बताते
मानवता को शर्मसार कर तुम क्या पाते
इंसानियत को तार तार कर वहशी तुम बन जाते
जन्मदात्री को अपमानित कर देश का नाम डुबाते
घृणित कुकृत्य करते दानव, श्रेणी में आते
कलुषित विद्रूपित मानसिकता का तेवर तुम दिखलाते
नारी का उपहास उड़ा कर ख़ुद को बड़ा बताते
धिक्कार है उस जीवन पर
जो मानव तुम कहलाते
माँ के आँचल को छूने का दुस्साहस तुम कर जाते
मौन मूक महिला आयोग चुप्पी साध जाते
प्रावधान हो कड़ी सज़ा का
फिर ना हाथ बढ़ाते