रफ़ा-दफ़ा

डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

बच्चों में कभी-कभी झगड़ा हो जाता था। तो बड़े-बूढ़े कहते थे रफ़ा-दफ़ा करो। आजकल तो हर जगह रफ़ा-दफ़ा है। एफ़ आई आर कराने जाइए कुछ ले-देकर रफ़ा-दफ़ा, बिल्डिंग का मैटिरियल ख़राब है, आज बनी कल ढह जाए,  रफ़ा-दफ़ा करो साहब आपका घर है। बच्चे हैं ख़र्चे हैं। जैसे साहब को अपने घर बच्चों के बारे में पता ना हो। ईमानदार के लिए ट्रांसफ़र है, सस्पेंशन है, शूटआउट है, लूप लाइन है, रिश्वत का इल्ज़ाम है।

हम होंगे कामयाब एक दिन, विश्वास पूरा है—हम होंगे कामयाब एक दिन—आज के दौर में यह गीत ही बदल गया है। जो पूर्वजों की धरोहर के रूप में मिला था।

हर जगह प्रवेश के 2 दरवाज़े हैं मूल्यों के साथ। रास्ते पर चले तो घुटन, ग़रीबी, दहशत, बिना छप्पर के रेंगने वाले कीड़े, दूसरे दरवाज़े से प्रवेश किया समय की बचत शान-शौकत, रौनक़ गाड़ी, बँगला और नाम आपका। 

कहते हैं सरस्वती से माया आती है ।

बिना सरस्वती भी माया आती है उल्टे जीवन में स्थायित्व और ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा ही बदल जाता है।

पेट की क्षुधा के लिए ब्रेड चुराने वाला कारावास में! क़ानून की किताबें जिसमें न्याय करवटें बदलता रहता अलमारियों में सजी रहती है। गुनाह सबूत माँगता है।, आँखों पर पट्टी बँधी है तो पलड़ा किसी भी और झुक सकता है।

संसार को चलाने में एक और की भूमिका होती है, गाड़ी के दो पहियों का एक हिस्सा कहा जाता है—नारी। स्याह रातों में निर्बल काया की चीख चीत्कार बंद अँधेरे कमरों में दफ़न कर दी जाती है! चश्मदीद नेत्रहीन हो जाते हैं! क़ानून के रखवाले हाथ बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं, रहा-सहा वकील साबित कर देता है! शारीरिक शोषण के साथ जद्दो-जेहद मानसिक शोषण भी हो जाता है, पागल खाने के क़ैदी इस बात के गवाह हैं। हैवानियत के आक़ा खुले घूमते हैं!

जिस तरह घनघोर बारिश के बाद तूफ़ान शांत हो जाता है इसी तरह गुमनामी में कुछ नाम चले जाते हैं। आरोप-प्रत्यारोप के बीच मरी हुई लाश से बदतर ज़िन्दगी कफ़न में दफ़न हो जाती है। केस ख़ारिज हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ हाल, घोटालों में, दस्तावेज़ों में आग बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों का धराशाई हो जाना, तो बाँध का बनना और बाँध ढह जाना ।

हम विकास के घोड़े पर सवार विकासशील से विकसित होते चले जा रहे हैं। पानी की एक बरसात कभी बाढ़ कभी सूखा हमारी विकासशील होने का सबूत देता रहता है। बाक़ी चीज़ें रफ़ा, हर समस्या का समाधान रफ़ा-दफ़ा! 

आदमी मामलों को रफ़ा-दफ़ा करता रहता है और सुकून से जीता रहता है।

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