सावन मनभावन
डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
सावन मनभावन आया
रिमझिम फुहारों से
आनंदित मेरा तन मन
पिया यह कैसी लगन
कोयल की कुहू कुहू सुन
गीत गुनगुनाए मेरा मन
ओ रंगरेज़ मेरे जिया पर
चढ़ा दिया तूने कैसा रंग
पायल के नूपुर छन-छन
हरी चूड़ियों की खन खन
गजरे की भीनी भीनी ख़ुश्बू से
महक रहा अंग प्रत्यंग
सावन के झूले में मुझको
प्रीत की डोरी से झूला रे
मेहँदी भरे सजे मेरे हाथ
खिल उठा हरसिंगार सा
मेरा चेहरा स्पर्श तेरा नूतन
धाराओं पर धाराएँ प्रेम रस
गिरती मेरे मन आँगन पर
बँधा रहे अटूट यह बंधन
नटखट नैनों ने झुक कर
जीवन किया तुझे समर्पण
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