काफ़िर था
डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
एक एक पल बड़ा भारी था।
रुकी हुई साँसों में बस एक।
साजन तेरा नाम काफ़ी था।
जब लगा रूह रुख़्सत हो।
उम्र भर लड़ती रही तुझसे।
बहुत कुछ कहना बाक़ी था।
मौत ने छोड़ दिया मुझको।
जानकर लबों पे तेरा नाम।
प्रेम के दो बोल कहना और।
जी भर तेरा दीदार बाक़ी था
मिल करके सुन लिया जब
तुमने हाले दिल का बयान
ख़ूबसूरत मौत हँसते हुए
ज़िंदादिली से गले लगाना
सरल, सहज, सुहाना था॥
आग़ोश में डूब जाऊँ तेरे
आँखों से ख़ौफ़ ओझल था।
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