झुकना

डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

पाठको, आज मैं उपस्थित हूँ झुकना व्यंग्य लेकर आपके सामने।

झुकना कई प्रकार का होता है। 

सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम झुकना ईश्वर के सामने झुकना। 

आजकल रुपयों के बल पर पंडित पुजारी झुक जाते हैं; रुपए देखे नहीं सीधे दर्शन हो जाते हैं आइए 5000 की रसीद कटवाइये, भस्म आरती में पहुँच जाइए—बाक़ी लाइन में लगे लगे थक जाते हैं। जब दर्शन करने की बारी आती है तो अचानक से यमदूत की तरह पुलिस प्रशासन आ जाता है। तो दूर से 1 सेकंड में भगवान पर आँख भी नहीं टिक पाती भगा दिया जाता है।

एक झुकना गुरु को देखकर झुकना, सम्मान देना अच्छा होता है! गुरु के आगे तो गोविंद भी झुके थे। 

नई पीढ़ी के लोग गुरु को देखकर कैसे रास्ते बदलते हैं कहीं—झुकना ना पड़ जाए; ईश्वर सद्बुद्धि दे। 

अब जोड़ों में दर्द है माता-पिता झुक कर ही चलेंगे। किससे कह दें मन की व्यथा? ज़िन्दगी भर बोझ उठाते-उठाते दर्द के कारण झुकने लगे हैं। 

कल अचानक से टी.वी. पर राजनीतिक झुकना देखा। यह सड़कें भी वही थीं लोग भी वही थे पर मंत्री जी साष्टांग दंडवत कर रहे थे; अरे याद आया चुनाव आ रहे हैं! अब देश की चिंता तो रहती नहीं, कम से कम दंडवत करके ही कुछ न्यूज़ वालों को मसाला दे दिया जाए! जनता बेचारी क्या करे पेट्रोल के दाम देखे या गाल टमाटर कर ले? कुछ खाए या भूखा ही मर जाए?

परसों के अख़बार में ‘एक नेताजी की हड्डी टूट गई’ पढ़कर आश्चर्य हुआ। अब हड्डी अपने से बड़े मंत्री को साधने के चक्कर में टूट गई। वह इतना झुके इतना झुके नमन करने के लिए की रीढ़ की हड्डी भी शर्मा गई! अभी फ़िलहाल हस्पताल में है शीघ्र ही ठीक हो जाएँगे।

हलधर किसान झुका-झुका इतनी गर्मी–सर्दी बारिश में बीज लगाता है और फ़सल का इंतज़ार करता रहता है। पसीने की एक-एक बूँद से सराबोर फिर भी हर ज़ुल्म के आगे झुका रहता है। कभी पानी का क़हर तो कभी ऊष्मा का, जब पेड़ झुलस जाते हैं। उस ताप के कारण तो किसान का क्या होता है जो भरी दुपहरी में खेतों पर रहता है?

कभी-कभी झुकना बहुत अच्छा भी हो जाता है परिवार में पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन, कोई एक झुक जाता है वरना नौबत तो, कोर्ट कचहरी तक पहुँच जाती है। इस मामले में सुबह आने वाला पेपर शान्ति वार्ता का कार्य कर देता है। पत्नी बड़बड़ाती ही रहती है, थोड़ी देर बाद पति पूछते, “कुछ कहा क्या तुमने?” अब वह दोहराना भी चाहे तो नहीं दोहराती। कुछ हद तक मोबाइलों ने अपने आप में ही गुम रहना सिखा दिया है; सिर उठाते हैं फिर नीचे कर लेते हैं। एक दिन बग़ीचे में पहुँच गई। बाहर से लेकर अंदर तक इस मोबाइल रूपी यंत्र में हर कोई व्यक्ति, मशग़ूल था। कोई सेल्फ़ी ले रहा था तो कोई गाना सुन रहा था। तो कोई चैटिंग कर रहा था तो कोई भगवान का भजन सुन रहा था। कुछ हद तक झुकने को कम किया है। अरे यह तो बताना ही भूल गई आज कल के युवाओं को सरकार के आगे झुकने की नौबत ही नहीं आती। 5जीबी के डाटा ने नौकरी के आंदोलन बंद कर दिए हैं। हाँ, फ़ुज़ूल के आंदोलन शुरू हो गए हैं। 

आज का जुलूस का जुलूस, आज इसका दिवस कल उसका दिवस और जो समझदार होते हैं वह विदेशी धरा पर जाकर झुक जाते हैं। 

झुककर लोग बड़ी-बड़ी पदवी ले लेते हैं या प्रमोशन मिल जाता है।

एक झुकना और है, शराब की झोंक में झुक जाते हैं! मन की सारी भड़ास रात में लोगों की नींद हराम करके निकालते हैं। उन्हें क्या पता कोल्हू के बैल को तो कल पर काम करने जाना है? नशे में रहते हुए भी अपना घर नशे में भी ढूँढ़ लेते हैं। यह इतर बात है, कभी-कभी झुकते-झुकते नाली-नलों में भी प्रवाहित हो जाते हैं। जो एक शोध का विषय है—मस्तिष्क का कौन सा भाग इन्हें सही रास्ते घर पर ले आता है ।

कई लोगों का मानना है कि झुकना सेहत के लिए अच्छा है। धन्य है भारत के वीर जवानों जो कभी नहीं झुकते हैं पर बेवजह युद्ध भी नहीं करते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि न ही युद्ध का प्रारंभ होता है ना अंत! नुक़्सान उधर भी होता है नुक़्सान इधर भी होता है। कई परिवारों को ग़म उधर भी झेलना पड़ता है कई परिवारों को ग़म इधर भी झेलना पड़ता है। 

आज के लिए इतना ही।

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