उस दिन

राहुलदेव गौतम (अंक: 255, जून द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)


उस दिन मैं जी लूँगा
जिस दिन लिख दूँगा
अपने पागल होने की तिथि
और अपने मरने का समय
गिरते हुए पहाड़ की ऊँचाई
मृत्यु को भरम जहाँ मरता जीवन हर क्षण
 
जी लूॅंगा उस दिन, 
जिस दिन लिख दूँगा
नदियाॅं सूख चुकी हैं
पानी टूट गया है
रंग अंधकार हो गया
दुनिया लाशों की भीड़ हो गई। 
 
जी लूॅंगा उस दिन
जिस दिन सारी रात समेटकर, 
एक मुर्दा से सारी साँसे छीन कर
अगली सुबह एक बेख़ौफ़ सफ़र में जाने से पहले। 
 
जी लूँगा उस दिन, 
जिस दिन यह मान लूँगा
सारी चेतनाएँ मर चुकी है
हवाओं में भी पीड़ा भर चुकी है। 
 
और यह जान लूँगा
अब सीधे अर्थों का ग़लत मर्म जान लिया गया। 
जी लूँगा उस दिन, 
जिस दिन भूख मर जायेगी
नींद भी खुल जायेगी
आवश्यकता होने पर
नींद होने पर। 

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