लहरों में साँझ

15-07-2024

लहरों में साँझ

राहुलदेव गौतम (अंक: 257, जुलाई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

तुम्हारे सूखे पाँव से लहरें जब टकराईं, 
तो मैंने जाना! 
लहरों में भी कुछ कहने का शोर होता है। 
 
मैंने जाना! 
साॅंझ भी रुक जाती है
किसी के लौट आने के लिए, 
जो एक दिन ठहरी हुई साॅंझ से
अलग हुआ था। 
 
मैंने जाना! 
ख़्वाब का चाॅंद, 
हथेलियों से फिसल जाता है। 
एक उम्र मर जाने पर। 
 
अगर जो मैंने सोचा था तुम्हारे लिए
तुमने भी तो सोचा होगा
अगर यह, “हाॅं” . . .
रिश्तों में शामिल हो जाता तो, 
कई मसलों के हल हो जाते। 
 
जहाँ से चले थे हम
जहाँ के लिए वहाँ पहुँचने पर लगता है। 
मौत भी . . . एक लंबा इंतज़ार है! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में