एक किताब

01-09-2024

एक किताब

राहुलदेव गौतम (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

जब कभी मैं, 
घर रहने लगूॅंगा . . . 
तो लिखूँगा एक किताब, 
उसमें लिखूॅंगा एक साॅंझ! 
जो पीपल के किसी टहनी में अटकी हुई है। 
 
लिखूॅंगा, उसमें माँ के कोमल हाथ के स्पर्श को! 
जो समय के अंत तक, 
मेरे मैं को एक नि:स्वार्थ स्नेह देता है। 
 
लिखूॅंगा!, की फिर से जीवन शुरू करता हूँ! 
फिर से नयी सुबह 
नयी साॅंझ करता हूँ! 
अब धीरे-धीरे हर बात का सब्र करता हूँ। 
 
और लिखूॅंगा! 
फिर से सब कुछ नया होगा 
जो टूटा है फिर से बनाना होगा 
जो पुराना हो गया था 
फिर से अपना होगा 
कुछ क़दम कुछ ऑंगन होगा। 
 
और यह भी लिखूॅंगा! 
सड़क के आगे खेतों तक
जीवित फ़सलों की हरियाली में 
न जाने क्या . . . 
खोजती एक नन्ही चिड़िया? 
 
लिखूॅंगा!! 
नदी की गोद में धॅंसता हुआ 
उदास सूरज! 
पगडंडी से, 
घास का बोझ उठाये 
गायों को हाॅंकता जा रहा एक चारवाहा। 

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