प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 007

01-07-2021

प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – 007

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 184, जुलाई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

1.
माँगने से यहाँ
कभी कुछ न मिला . . . 
हमने माँगकर
माफ़ी तक
देख ली . . . !
 
2.
भूलने की कोशिश,
करूँगी तमाम . . . 
माफ़ करना
मगर,
मेरे बस में नहीं . . . !
 
3.
ज़िन्दगी की गाड़ी
चले भी तो कैसे . . . 
एक पहिया
अड़ा है . . . 
वहीं पर खड़ा है!
 
4.
तुम्हें,
माफ़ करने की
कोशिश तो की थी . . . 
मगर क्या करूँ
ज़ख़्म
अब भी हरा है . . . !
 
5.
क़सम है तुम्हें
यूँ न देख करो . . .
धड़कनें जो थमीं,
मर जाएँ,
न हम . . . !
 
6.
उठो और बढ़ो,
यूँ ,
न रेंगते रहो . . . 
वक़्त की
रेत पर,
छोड़ने
हैं निशां . . . !
 
7.
बात छोटी नहीं
बात थी वो बड़ी . . . 
वो,
जो तू ने कही . . . 
जो,
मैं सह न सकी . . . !
 
8.
भूल जाने की आदत,
नियामत ही है . . . 
याद रहता जो सब,
जी न पाता कोई . . . !
 
9.
शिकवे गिले
थक चुके हैं बहुत . . . 
अब चलो,
ख़ाक डालें . . . 
चलो,
सब भुला दें!
 
10.
इक बात पे तेरी
जो मरते,
तो कहते . . . 
दीवानगी की बस्ती
बसे जा रही है . . . !
 
11.
आधे आधे का वादा
है हमने किया . . . 
जो मैं थक गई
तू न रुकना पिया . . . !
 
12.
चले जो साथ हम
रास्ते, संग हुए . . . 
उन्हें भी भा गए
गीत, अपनी प्रीत के!
 
13.
सौ रब की तुझे
जो किसी से कहा . . . 
वो जो, मैं
कह न पाई . . . 
वो जो, तूने
सुन लिया  . . . !
 
14.
जीवन में,
सुख दुख,
कुछ भी नहीं . . . 
जो मानो . . . तो दुख है,
जो मानो ..तो सुख  . . . !

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