जादू

प्रीति अग्रवाल 'अनुजा' (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

"अम्मा, भाभी ने तो भैया को अपने पल्लू से बाँध रखा है, बस कोई दिन जा रहा है कि . . .

"अरी क्या करूँ . . . माना ही नहीं तेरा भाई . . . एक से बढ़कर एक रिश्ते आ रहे थे, गाड़ी बँगले समेत . . .~ पर ना जी, इसे तो यही पसन्द आनी थी। बार-बार यही कहता रहा, ’माँ, बहुत सीधी और अच्छी लड़की है, तेरी ख़ूब सेवा करेगी और देख मच्छी भी नहीं खाती, बिल्कुल हमारे जैसी है।’ जाने क्या जादू किया, इस बंगालन ने . . .!"

सुधीर का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया, अम्मा को शायद मालूम न था कि वह ऑफ़िस से घर जल्दी आ गया था और कमरे में बैठा सब सुन रहा था।

ग़ुस्से में तमतमाता, दरवाज़े की ओर बढ़ते हुए बोला, "अम्मा भी, हद करती है . . . और तुम भी पता नहीं कितने दिन से यह सब चुपचाप सह रही हो . . . बस बहुत हुआ . . . सामान बाँधो . . . अब हम एक पल भी यहाँ नहीं रहेंगे, मैं अभी जाकर उनसे बात करके आता हूँ . . ."

मिताली ने बड़े प्यार से सुधीर का हाथ पकड़ा, और मुस्कुराते हुए बोली, "चलेंगे, इतनी जल्दी क्या है . . . बस थोड़ा सा समय और दीजिए . . . बंगालन हूँ, अभी माँ जी पर भी तो जादू चलाना है . . ..!"

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