अकादमिक लेखन: शोध की नई प्रवृत्तियाँ— पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

18 Feb, 2023

अकादमिक लेखन: शोध की नई प्रवृत्तियाँ

अकादमिक लेखन: शोध की नई प्रवृत्तियाँ— पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न


नवाचार को अपनाएँ शोधार्थी—प्रो. देवराज
वर्तमान में भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर—प्रो. ऋषभदेव शर्मा
शोध-पद्धति का ज्ञान आवश्यक—प्रो. पूरन चंद टंडन

 

बिजनौर (उत्तर प्रदेश)। वर्धमान कॉलेज, बिजनौर (उत्तर प्रदेश) में “अकादमिक लेखन: शोध की नई प्रवृत्तियाँ” विषय पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की शुरूआत माँ सरस्वती की वंदना और अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर इनॉग्रल सेशन (उद्घाटन सत्र) का शुभारंभ किया गया। इसके पश्चात कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों को बालवृक्ष देकर उनका स्वागत किया गया। साथ ही महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफ़ेसर सी.एम. जैन ने संगोष्ठी में उपस्थित अतिथियों का स्वागत किया। साथ ही इस महत्त्वपूर्ण विषय की गंभीरता पर बात की। उन्होंने कहा कि इस तरह की संगोष्ठियों में शोधार्थियों और प्राध्यापकों को बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए, जिससे उनके रिसर्च की क़ाबिलियत में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे। इसके पश्चात संगोष्ठी की कॉर्डिनेटर डॉ. अलका साहू ने संगोष्ठी में सहयोग के लिए विभिन्न संस्थाओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी के कन्वीनर डॉ. एस. के. शोन ने शोध पत्रिका में छपे शोधपत्रों और उनकी गुणवत्ता की बात की। 

इसी क्रम में मुख्य अतिथि ने यूजीसी केयर लिस्टेड पत्रिका 'शोध-दिशा' के 484 पृष्ठीय दीर्घकाय विशेषांक का लोकार्पण किया। इस विशेषांक में इस संगोष्ठी के लिए प्राप्त 81 शोधपत्र प्रकाशित किए गए हैं। 

इसके पश्चात डॉ. शशि प्रभा ने संगोष्ठी के बीज वक्तव्य के लिए वर्धा से पधारे प्रोफेसर देवराज, डीन, अनुवाद विद्यापीठ, महात्मा गाँधी हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा का परिचय-पाठ किया। तत्पश्चात्‌ उन्होंने अपना गंभीर और सुलझा वक्तव्य देना शुरू किया। उन्होंने अपनी बात करते हुए कहा कि मैं भाषा का छोटा सा सिपाही हूँ। इसी क्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमारा देश वैश्विक प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक पहचान आदि की धारा में एक साथ छलाँग लगा रहा है। उन्होंने शोधार्थियों द्वारा उनके विषय चुनाव की पद्धति पर बात करते हुए नवाचार को अपनाने की सलाह दी। 

इसी क्रम में डॉ. यशवेंद्र ढाका ने संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में पधारे प्रो. ऋषभदेव शर्मा (पूर्व अध्यक्ष, पोस्टग्रेजुएट ऐंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) का परिचय-पाठ किया। प्रो. ऋषभदेव ने शोध की वर्तमान दशा और दिशा पर बात करते हुए भूमंडलीकरण के प्रभाव का मूल्यांकन किया। साथ ही विभिन्न विमर्शों पर शोध की प्रक्रिया और उपयोगिता पर बात की। उन्होंने बताया कि वर्तमान में पूरा भारत अपनी कर्मठता और क्रियाशीलता से विश्वगुरु बनने की प्रक्रिया में लगा हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि शोधार्थियों को भी अपने शोध की गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए देश की प्रगति में अपना योगदान देना चाहिए। 

इनॉग्रल सेशन के बाद विभिन्न तकनीकी सत्रों का आयोजन हुआ, जिसमें प्रतिभागियों ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया। 

संगोष्ठी का सफल मंच संचालन ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. अन्जू बंसल द्वारा किया गया। 

दूसरे दिन संगोष्ठी के चतुर्थ टेक्निकल सेशन में चेयरपर्सन के रूप में अलवर से पधारे प्रोफ़ेसर राजीव जैन, डीन, सनराइज यूनिवर्सिटी, अलवर और को-चेयरपर्सन डॉ. राजीव जौहरी, डीन, फैकेल्टी ऑफ़ साइंस, वर्धमान कॉलेज, बिजनौर शामिल हुए। इस सेशन में विभिन्न शोधार्थियों ने ऑनलाइन तथा ऑफ़लाइन माध्यम से अपने शोधपत्रों का वाचन किया। कार्यक्रम की शुरूआत में अतिथि वक्ता के रूप में डॉ. दीप्ति माहेश्वरी, एक्स डीन, रवींद्रनाथ टैगोर, यूनिवर्सिटी, भोपाल ने रिसर्च मैथडोलॉजी: सेलेक्शन ऑफ़ टूल्स ऐंड टेक्निक्ल विषय पर अपना सारगर्भित वक्तव्य ऑनलाइन माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने विषय पर बात करते हुए विभिन्न विषयों और उनमें प्रयोग की जाने वाली विभीन्न शोध-प्रविधियों पर सोदाहरण अपनी बात रखी। 

इसके पश्चात आईआईटी कानपुर के विद्वान प्रोफ़ेसर अरुण कुमार शर्मा, हेड एवं डीन, ह्यूमैनिटीज ऐंड सोशल साइंसेज ने हाउ टू राइट अ रिसर्च प्रपोजल पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने अपने विषय पर बोलते हुए कहा कि शोधार्थियों को सबसे पहले विषय का चुनाव किस प्रकार किया जाय, इस पर विचार करना चाहिए। तत्पश्चात्‌ यह देखना चाहिए कि उस विषय पर अभी तक कितना कार्य हो चुका है। साथ ही आप उसमें नया क्या करने वाले हैं और आपकी पद्धति वैज्ञानिक है अथवा नहीं। साथ ही आपके शोध में समाज के नैतिक विषयों को उठाया जा रहा है अथवा नहीं। इन सभी संस्तरणों पर शोधार्थियों को क्रमवार विचार करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। प्रोफ़ेसर शर्मा के बारे में जब श्रोताओं को पता चला कि आप वर्धम कॉलेज के पूर्व छात्र रहे हैं, तो पूरा सभागार तालियों से गूँज उठा। 

अगले सत्र में विभिन्न शोधार्थियों द्वारा शोधपत्रों का वाचन किया गया, जिनमें प्रवीण कुमार, अनमत खान आदि ने शोधप्रविधि पर अपनी बात रखी। इस टैक्निकल सत्र का मंच संचालन डॉ. मेघना अरोड़ा द्वारा किया गया। 

इसके पश्चात षष्ठ टैक्निकल सत्र की शुरूआत हुई, जिसके चेयरपर्सन डॉ. जी.आर. गुप्ता, पूर्व प्राचार्य, वर्धमान कॉलेज और को-चेयरपर्सन डॉ. एस.के. गुप्ता, डीन, फैकेल्टी ऑफ़ कॉमर्स, वर्धमान कॉलेज रहे। 

इस सत्र में अतिथि वक्ता के रूप में प्रोफ़ेसर एस.के. यादव, ऐनसीईआरटी, नई दिल्ली और डॉ. भावना जौहरी, दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट आगरा ने संगोष्ठी के विषय पर अपना महत्त्वपूर्ण वक्तव्य दिया। साथ ही शोधार्थियों व प्राध्यापकों ने भी अपने शोधपत्र पढ़े। 

अंत में इस संगोष्ठी का समापन सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र की शुरूआत अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर की गई। इसके पश्चात संगोष्ठी के कन्वीनर डॉ. एस.के. शोन ने अतिथियों का स्वागत किया। कॉर्डिनेटर डॉ. अलका साहू ने पूरे दो दिनों तक चले इस आयोजन का रिपोर्ट प्रस्तुत किया। 

तत्पश्चात्‌ दिल्ली विश्वविद्यालय से विशेष अतिथि के रूप में पधारे प्रोफ़ेसर पूरन चंद टण्डन ने इस संगोष्ठी के विषय की महत्ता पर बात करते हुए कहा कि यह विषय प्रत्येक शोधार्थी व शैक्षिक कर्त्तव्य में लगे प्राध्यापकों के लिए आवश्यक है, जिनका सीधा सम्बन्ध विद्यार्थियों के साथ संप्रेषण व अध्यापन के माध्यम से होता है। आपने शोध-पद्धति से सम्बंधित ज्ञान के विस्तार को आवश्यक बताया। 

समापन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में साउथ एशियन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली से पधारे प्रोफ़ेसर पंकज जैन ने साइंस विषयों में अपनाई जाने वाली शोधप्रविधि का उल्लेख करते हुए इस संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए आयोजन समिति को बधाई दी। आपने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों से शिक्षण संस्थाओं में शोध-प्रक्रिया को बल मिलता है। 

प्रो. देवराज में समाकलन वक्तव्य दिया और प्रोफ़ेसर ऋषभदेव शर्मा ने संगोष्ठों का मूल्यांकन करते हुए टिप्पणी की। दोनों ने ही इस बात पर ज़ोर दिया कि शोध-पद्धति के हर एक सोपान पर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में अलग-अलग कार्यशालाएँ आयोजित की जानी चाहिए। 

संगोष्ठी की ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. अन्जू बंसल द्वारा अतिथियों के माध्यम से सर्टिफ़िकेट वितरण का कार्य पूर्ण किया गया। इसी क्रम में डॉ. सी.एस. शुक्ला, पूर्व विभागाध्यक्ष, बीएड विभाग की दो पुस्तकों, क्रमशः भारतीय एवं पाश्चात्य शिक्षाविद व शिक्षा मनोविज्ञान का अतिथि विद्वानों द्वारा विमोचन किया गया। 

अंत में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफ़ेसर सी.एम. जैन द्वारा सभी अतिथियों व संगोष्ठी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। समापन सत्र का सफल संचालन डॉ. यशवेंद्र ढाका द्वारा किया गया। 

इस अवसर पर विभिन्न प्रदेशों और शहरों से पधारे प्रतिभागियों व शोधार्थियों के अलावा शोध के इच्छुक विद्यार्थीगण भी उपस्थित रहे। साथ ही महाविद्यालय के प्राध्यापकगणों में डॉ. रेणु शर्मा, डॉ. राजीव जौहरी, डॉ. सुनील अग्रवाल, डॉ. एस.के. जोशी, डॉ. ए.के.एस. राणा, डॉ. पूनम शर्मा, डॉ. संजय कुमार, डॉ. टी.ऐन. सूर्या, डॉ. धर्मेंद्र कुमार, डॉ. पद्मश्री, डॉ. जे.के. विश्वकर्मा, डॉ. शशि प्रभा, डॉ. प्रीति खन्ना, डॉ. राजेश यादव, डॉ. प्रमोद कुमार, डॉ. नीरज कुमार, डॉ. मुकेश कुमार, डॉ. वैशाली पूनिया, डॉ. सुरभि सिंघल, डॉ. निदा खान, डॉ. राजीव अग्रवाल, डॉ. धर्मेंद्र यादव, डॉ. दिव्या जैन, मौ. साबिर, डॉ. पंकज भटनागर, श्री विकास, डॉ. सोनल शुक्ला, डॉ. अवनीश अरोड़ा, डॉ. विपिन देशवाल, डॉ. चारुदत्त आर्य, डॉ. दुर्गा जैन, डॉ. काकरान, श्री प्रशांत आहलूवालिया, डॉ. राहुल, डॉ. प्रतिभा, डॉ. अनामिका, डॉ. ओ.पी. सिंह आदि शामिल रहे।

प्रस्तुति—
डॉ. अंजु बंसल
वर्धमान कॉलेज, बिजनौर। 

अकादमिक लेखन: शोध की नई प्रवृत्तियाँ