हिंदी के सार्वभौमिकीकरण पर बल दिया जाए-संतोष चौबे (वातायन-संगोष्ठी-161) 

15 Dec, 2023

वातायन संगोष्ठी-161

हिंदी के सार्वभौमिकीकरण पर बल दिया जाए-संतोष चौबे (वातायन-संगोष्ठी-161) 

लंदन, दिनांक 13-12-2023: वातायन-यूके के तत्वावधान में दिनांक 09 दिसंबर 2023 को वातायन संगोष्ठी-161 का आयोजन किया गया। इसके अंतर्गत, रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे के साहित्यिक अवदान और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान पर व्यापक चर्चा हुई। चर्चा के क्रम में उनके द्वारा वैश्विक आधार पर हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में किए गए बहुमूल्य कार्यों को रेखांकित किया गया। उल्लेखनीय है कि इस संगोष्ठी का स्वरूप एक साक्षात्कार-संवाद के रूप में था जिसके अंतर्गत, ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज के प्रबंध-निदेशक और जाने-माने प्रवासी साहित्यकार डॉ. पद्मेश गुप्त ने हिंदी के विस्तारीकरण के व्यापक परिप्रेक्ष्य में श्री संतोष चौबे से प्रश्न किए। अपने सहज-स्वाभाविक प्रत्युत्तरों में श्री चौबे का बल प्रवासी साहित्य, विदेशों में हिंदीतर छात्रों के हिंदी शिक्षण तथा विदेशों में हिंदी सीखने को सुकर बनाने के लिए प्रौद्योगिकियों के प्रचुर प्रयोग पर था। श्री संतोष चौबे ने सभी हिंदी विद्वानों, लेखकों और हिंदी प्रेमियों से आह्वान किया कि वे हिंदी के सार्वभौमिकीकरण में अपना योगदान करें तथा हिंदी को एक लोकप्रिय वैश्विक भाषा बनाने के स्वप्न को साकार करें। 

वैश्विक हिंदी परिवार के संस्थापक-अध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी की अध्यक्षता में आयोजित इस संगोष्ठी की महत्ता इसी बात से प्रमाणित होती है कि श्री संतोष चौबे की प्रत्यक्ष निगरानी में वर्ष 2023 के दिसंबर माह के उत्तरार्ध में भोपाल में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है तथा ‘वातायन-संगोष्ठी 161’ को उक्त सम्मेलन की पूर्व-पीठिका के रूप में देखा जा रहा है। ग़ौरतलब है कि संतोष चौबे जी द्वारा स्थापित हिंदी की प्रोत्साहक संस्था ‘विश्वरंग’ के बैनर तले ही इस अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है क्योंकि इसमें श्री चौबे ने उन्हीं पक्षों पर अपेक्षित ज़ोर दिया जिन पर सम्मलेन के अधिकतर इवेंट्स आधारित हैं। 

इस साक्षात्कार में श्री चौबे ने अपना लेखकीय परिचय देते हुए अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि की भी चर्चा की तथा यह बताया कि उनके परिवार में साहित्य, संगीत और शास्त्रीय संगीत की पृष्ठभूमि पहले से ही उपलब्ध थी तथा ये उन्हें पिता से विरासत के रूप में मिली। उनकी अभिरुचि विज्ञान में भी उसी अवस्था में पैदा हुई। उन्होंने बताया कि वे अपनी चयन-पद्धति के अनुसार केवल उसी काम को करने के लिए प्रेरित हुए जो उनके मन को अच्छी लगती थी। साक्षात्कार के क्रम में उन्होंने जेपी आंदोलन के दौरान विरचित एक छोटी कविता ‘सफलता आक्रांत करती है’ भी सुनाई। उन्होंने बताया कि 27-28 वर्ष की उम्र तक आते-आते उन्होंने अपने सारे सपने पूरे कर लिए थे और प्रशासनिक सेवा में भी आ गए थे। उन्होंने एक दूसरी कविता ‘मेरे अच्छे आदिवासियों’ का भी हृदयग्राही पाठ किया। 

डॉ. पद्मेश के पूछे जाने पर श्री चौबे ने कहा कि वे प्रवासी साहित्य और प्रवासी साहित्यकारों से बहुत बाद में परिचित हुए तथा वर्ष 2019 में उनसे उनका साक्षात्कार हुआ। उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्य पर वास्तव में ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि इन प्रवासी साहित्यकारों ने भारत से बाहर जाकर सफलता प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त, भारत में तो हिंदी और उर्दू के बीच एक द्वंद्वात्मक स्थिति रही है लेकिन अमरीका और अन्य देशों में ऐसा नहीं था। प्रवासी साहित्यकारों के सहयोग से हम हिंदी को एक ताक़त बना सकते हैं। 

मंच-संचालक डॉ. गुप्त द्वारा भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद वीरेंद्र शर्मा को आमंत्रित किए जाने पर श्री शर्मा ने दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर रेखा सेठी के वक्तव्य का दृष्टांत देते हुए कहा कि श्री चौबे का जीवन प्रेरणाप्रद रहा है। तदनंतर, प्रोफे. रेखा सेठी ने कहा कि श्री चौबे द्वारा बताई गईं बातें इतनी दिलचस्प थीं कि उनका श्रवण हमने कविता की तरह किया। प्रोफे. सेठी ने श्री चौबे द्वारा इस ऑनलाइन मंच पर सुनाई गई सभी कविताओं की तहे-दिल से प्रशंसा की। कुछ प्रबुद्ध श्रोताओं ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए और श्री संतोष चौबे के कृतित्व और कार्यकलापों की सराहना की। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री अनिल शर्मा जोशी ने बताया कि भारत में साहित्यकार अपनी उतनी पहचान-प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पाते जितनी कि ब्रिटेन में। उन्होंने कहा कि हिंदी के विकास में देश-विदेश की सभी संस्थाएँ अपना योगदान कर सकती हैं तथा सभी को अपनी ऊर्जाएँ जोड़कर इस महत्त्वपूर्ण कार्य को करना होगा। 

इस संगोष्ठी को इंद्रप्रस्थ महाविद्यालय (दिल्ली वि.वि.) का सान्निध्य मिला तथा इसकी संयोजक थीं—प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर जो ‘वातायन-यूके’ की संस्थापक भी हैं। इस संगोष्ठी में वातायन-यूके की सहयोगी संस्थाएँ रही हैं—वैश्विक हिंदी परिवार, विश्वरंग आदि जबकि ‘वातयन-यूके’ इस वर्ष अपनी 20वीं वर्षगाँठ मना रहा है। 

कार्यक्रम का समापन वातायन-यूके की कर्मठ कार्यकर्त्री सुश्री आस्थादेव ने किया। उन्होंने श्री संतोष चौबे द्वारा व्यक्त विचारों तथा उनके जीवन के विभिन्न प्रसंगों से प्राप्त प्रेरणाओं की चर्चा की तथा मंच पर उनकी उपस्थिति के लिए उनके प्रति आभार प्रकट किया। साथ ही, उन्होंने मंच पर उपस्थित प्रबुद्धजनों और ज़ूम एवं यूट्यूब से जुड़े श्रोता-दर्शकों के प्रति भी आभार प्रकट किया। 

 (प्रेस रिपोर्ट-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र) 

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