साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित की गई रामदरश मिश्र जन्मशती संगोष्ठी
साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित की गई रामदरश मिश्र जन्मशती संगोष्ठी
रामदरश मिश्र के साहित्य में मानवता के सच्चे सूत्र हैं—रघुवीर चौधरी
सौवें वर्ष में चल रहे हिंदी के वयोवृद्ध प्रो. मिश्र ने बताया अपनी लंबी उम्र का राज़
रामदरश मिश्र ने अपने लंबे जीवन के रहस्य के बारे में बताते हुए कहा कि इसके लिए मैं तीन कारण बताता हूँ पहला—मैंने कोई महत्वकांक्षा नहीं पाली, दूसरा कोई नशा नहीं किया यहाँ तक कि पान तक भी नहीं और तीसरा मेरा बाज़ार से कोई सम्बन्ध नहीं, मतलब घर का ही खाया-पिया।
दिल्ली। साहित्य अकादमी द्वारा प्रतिष्ठित कवि, कथाकार रामदरश मिश्र जन्मशती संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन प्रख्यात गुजराती लेखक एवं साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य रघुवीर चौधरी ने किया। रामदरश मिश्र स्वयं विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। बीज भाषण प्रख्यात हिंदी लेखक प्रकाश मनु ने दिया और अध्यक्षीय वक्तव्य साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा द्वारा दिया गया। कार्यक्रम के आरंभ में अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव द्वारा स्वागत वक्तव्य दिया गया।
पूरे दिन चले इस कार्यक्रम में रामदरश मिश्र जी के पद्य और गद्य साहित्य पर अलग-अलग दो सत्रों में आमंत्रित विद्वानों द्वारा आलेख पढ़े गए। पहले सत्र में अध्यक्ष के तौर पर सुविख्यात कवि बालस्वरूप राही और वक्ता के रूप में कवि-आलोचक ओम निश्चल तथा प्रोफ़ेसर व मिश्र जी की सुपुत्री प्रोफ़ेसर स्मिता मिश्र ने अपने विचार व्यक्त किए। दूसरे सत्र की अध्यक्षता अंतरराष्ट्रीय महात्मा गाँधी हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति गिरीश्वर मिश्र ने की। इस सत्र में मिश्र जी के कथेतर गद्य साहित्य पर डॉ. वेद मित्र शुक्ल, कथा साहित्य पर कवि-कथाकार सुश्री अलका सिन्हा एवं आलोचना पर वरिष्ठ आलोचक वेदप्रकाश अमिताभ ने अपने-अपने आलेख-पाठ किए।
इस अवसर पर साहित्य अकादमी के सचिव के। श्रीनिवासराव ने जन्मशती संगोष्ठी को दुर्लभ अवसर बताते हुए कहा कि रामदरश मिश्र के स्वभाव की सरलता उनके लेखन में भी है, जो उनके व्यक्तित्व के साथ ही उनके कृतित्व को महत्त्वपूर्ण बनाता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित रघुवीर चौधरी जो अहमदाबाद में श्री मिश्र के शिष्य भी रहे, ने अपने ‘सर’ को याद करते हुए गुजरात सम्बन्धी अनेक संस्मरण श्रोताओं से साझा किए। उन्होंने उनकी रचनाओं में नाटकीय तत्वों और कहानियों के अंत में मानवता जाग्रत होने वाले बिंदुओं पर विशेष चर्चा की। आगे उन्होंने कहा कि उनके उपन्यास पात्रों के विशिष्ट चरित्र चित्रण के नाते महत्त्वपूर्ण हैं। ‘अपने लोग’ को उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके छोटे उपन्यास भी अपनी कलात्मकता में विशिष्ट है। रामदरश मिश्र द्वारा गाए जाने वाले कजरी गीतों को याद करते हुए कहा कि वे सस्वर गाते थे।
बीज वक्तव्य देते हुए प्रकाश मनु ने कहा कि श्री मिश्र साहित्य के हिमालय पुरुष है, जिसके नीचे बैठकर नयी पीढ़ी अनेक बातें सीख सकती है। उनके संपूर्ण लेखन में समय का इतिहास मिलता है और उस सबका मिज़ाज गंगा-जमुनी है। उनकी कविताओं में नए ज़माने का बोध तो है ही उनका गद्य भी बहुत प्रभावशाली है। उनकी हर विधा में आम-आदमी ही केंद्र में है।
रामदरश मिश्र ने इस भव्य आयोजन के लिए साहित्य अकादमी को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस सम्मान से मैं अभिभूत हूँ। उन्होंने अपने लंबे जीवन के रहस्य के बारे में बताते हुए कहा कि इसके लिए मैं तीन कारण बताता हूँ पहला—मैंने कोई महत्वकांक्षा नहीं पाली, दूसरा कोई नशा नहीं किया यहाँ तक कि पान तक भी नहीं और तीसरा मेरा बाज़ार से कोई सम्बन्ध नहीं, मतलब घर का ही खाया-पीया। उन्होंने अपने कई संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मैं अमूमन जहाँ जाता हूँ, वहीं का होकर रह जाना चाहता हूँ। इसीलिए मुझे घर-घुसरा भी कहा जाता है। उन्होंने अपने गुजरात के आठ वर्षों को बहुत आत्मीयता से याद करते हुए उमाशंकर जोशी और भोला भाई पटेल को भी याद किया। अपने गुरु हजारी प्रसाद द्विवेदी के भी कई संस्मरण उन्होंने सुनाए। अंत में उन्होंने अपने कई मुक्तक, कविताएँ एवं अपनी सुप्रसिद्ध ग़ज़ल “बनाया है मैंने यह घर धीरे-धीरे” सुनाई।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि गाँव हमेशा मिश्र जी के साथ रहा और उनकी कविताओं में मानवता को प्रतिष्ठित किया गया है। उनकी रचनाओं में ग्रामीण संवेदनाओं के साथ पूरा युग बोध प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत होता है।
प्रथम सत्र जो उनके पद्य साहित्य पर केंद्रित था कि अध्यक्षता बालस्वरूप राही ने की और उनकी पुत्री स्मिता मिश्र एवं ओम निश्चल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। स्मिता मिश्र ने अपने पिता की सदाशयता और जिजीविषा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी हिम्मत से ही परिवार की हिम्मत भी बनी रही। ओम निश्चल ने कहा कि उनकी कविता की गीतात्मकता उसकी ताक़त है। पूरी सदी का काव्य बोध उनके लेखन में झलकता है। उनका लेखन हमेशा समकालीन परिस्थितियों से परिचालित होता रहा। बाल स्वरूप राही ने मॉडल टाउन में रहने के उनके संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि वे बहुत ही सहज और मानवीय थे। उन्होंने उनकी कई रचनाओं को पढ़कर भी सुनाया।
द्वितीय सत्र रामदरश मिश्र के गद्य साहित्य पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात लेखक और शिक्षाविद् गिरीश्वर मिश्र ने की। इस सत्र में अलका सिन्हा ने उनके कथा लेखन में उपेक्षित पात्रों की बेहतरी की कल्पना और स्त्री के संघर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका पूरा लेखन गाँव के यथार्थ का चित्रण और बहुत ईमानदारी से किया गया है। डॉ. वेद मित्र शुक्ल ने उनके कथेतर गद्य पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके कथेतर गद्य में भी कविता/कहानी के अंश हैं। मिश्र जी के साहित्य में कथेतर गद्य ने बड़ी सहजता से अपना स्थान बनाया है। इसके बावजूद कथेतर की कई विधाओं में उन्होंने प्रचुर मात्रा में लिखा है। ‘जीवन-राग’ और जीवन मूल्यों की पहचान से गुंजित उनका कथेतर साहित्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। सुविख्यात आलोचक वेदप्रकाश अमिताभ ने उनकी आलोचना पुस्तकों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मूल्य उनकी आलोचना को समझने का बीज शब्द है। रामदरश मिश्र ने आलोचना को भी सृजनात्मक बना दिया है। दूसरे शब्दों में उनकी आलोचना को ‘सृजनात्मक आलोचना’ कहा जा सकता है।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि गाँव हमेशा मिश्र जी के साथ रहा और उनकी कविताओं में मानवता को प्रतिष्ठित किया गया है। उनकी रचनाओं में ग्रामीण संवेदनाओं के साथ पूरा युग बोध प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत होता है।
प्रथम सत्र जो उनके पद्य साहित्य पर केंद्रित था कि अध्यक्षता बालस्वरूप राही ने की और उनकी पुत्री स्मिता मिश्र एवं ओम निश्चल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। स्मिता मिश्र ने अपने पिता की सदाशयता और जिजीविषा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी हिम्मत से ही परिवार की हिम्मत भी बनी रही। ओम निश्चल ने कहा कि उनकी कविता की गीतात्मकता उसकी ताक़त है। पूरी सदी का काव्य बोध उनके लेखन में झलकता है। उनका लेखन हमेशा समकालीन परिस्थितियों से परिचालित होता रहा। बाल स्वरूप राही ने मॉडल टाउन में रहने के उनके संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि वे बहुत ही सहज और मानवीय थे। उन्होंने उनकी कई रचनाओं को पढ़कर भी सुनाया।
द्वितीय सत्र रामदरश मिश्र के गद्य साहित्य पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात लेखक और शिक्षाविद् गिरीश्वर मिश्र ने की। इस सत्र में अलका सिन्हा ने उनके कथा लेखन में उपेक्षित पात्रों की बेहतरी की कल्पना और स्त्री के संघर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका पूरा लेखन गाँव के यथार्थ का चित्रण और बहुत ईमानदारी से किया गया है। डॉ. वेद मित्र शुक्ल ने उनके कथेतर गद्य पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके कथेतर गद्य में भी कविता/कहानी के अंश हैं। मिश्र जी के साहित्य में कथेतर गद्य ने बड़ी सहजता से अपना स्थान बनाया है। इसके बावजूद कथेतर की कई विधाओं में उन्होंने प्रचुर मात्रा में लिखा है। ‘जीवन-राग’ और जीवन मूल्यों की पहचान से गुंजित उनका कथेतर साहित्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। सुविख्यात आलोचक वेदप्रकाश अमिताभ ने उनकी आलोचना पुस्तकों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मूल्य उनकी आलोचना को समझने का बीज शब्द है। रामदरश मिश्र ने आलोचना को भी सृजनात्मक बना दिया है। दूसरे शब्दों में उनकी आलोचना को ‘सृजनात्मक आलोचना’ कहा जा सकता है।
अंत में अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि उनके लेखन में सहज रूप में मानवीय मूल्यों की स्थापना पाई जाती है। उनकी सभी रचनाओं में जीवन संघर्ष का सच्चा प्रतिनिधित्व है और वह समय के साथ अपने को बदलते भी रहे हैं। कुल मिलाकर रामदरश मिश्र समग्रता के साथ साहित्य की रचना के पक्षधर हैं।
कार्यक्रम का संचालन अकादमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया। कार्यक्रम में रामदरश मिश्र के पूरे परिवार के साथ ही उनके अनेक शिष्य, लेखक, कॉलेज के विद्यार्थी और पत्रकार उपस्थित थे।