प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ संगोष्ठी संपन्न, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, तेलंगाना

06 May, 2024
प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ संगोष्ठी संपन्न, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, तेलंगाना

प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ संगोष्ठी संपन्न, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, तेलंगाना

युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल पंद्रहवीं संगोष्ठी 28 अप्रैल 2024 (रविवार) 4 बजे से आयोजित की गई। 

डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि यह संगोष्ठी प्रख्यात चिंतक प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई। बतौर विशिष्ट अतिथि प्रखर व्यंग्यकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी, सुप्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. मंजु शर्मा जी मंचासीन हुए। 

कार्यक्रम का शुभारंभ दीपा कृष्णदीप द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात्‌ प्रदेश अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने अतिथियों का परिचय दिया एवं शब्द पुष्पों से अतिथियों का स्वागत किया। संस्था का परिचय देते हुए कहा कि यह एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है, साथ अन्य सभी भाषाओं के संवर्धन हेतु कार्य करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों के विशिष्ठ साहित्यिक योगदान हेतु उन्हें हर वर्ष पुरस्कृत करती है। युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं उन्हें सम्मानित करना भी संस्था का एक उद्देश्य है। अन्य क्षेत्रो की ललित कलाओं को प्रोत्साहित करना एवं सम्मानित करना संस्था का लक्ष्य है। 

विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय जी ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि “दर्शन में जो द्वंद्वात्मक भौतिक विकासवाद है, वही राजनीति में साम्यवाद है और वही साहित्य में प्रगतिवाद है। पूँजीवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण श्रमिकों और कृषकों के उत्पीड़न और उनके भीतर चेतना का शंखनाद करने में साम्यवाद ने अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वाह किया है। 

मुंशी प्रेमचंद, रामेश्वर करुण से लेकर केदारनाथ अग्रवाल, डॉ रामविलास शर्मा, नागार्जुन, गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’, त्रिलोचन शास्त्री सहित अनेक कवियों और साहित्यकारों ने इस कालखंड में अपनी लेखनी के माध्यम से सामान्य जन, कृषक और श्रमिक, सर्वहारा वर्ग और हाशिये पर खिसके समाज की पीड़ा और संघर्ष को जहाँ मुखरित किया वहीं पूँजीवाद के क्रूर चेहरे को सामने लाने का महत्वपूर्व कार्य कर समाजवादी चेतना को आगे बढ़ाया। जीवन के कटु यथार्थ, व्यक्ति की दीन-हीन स्थिति और किसान और मज़दूर के प्रति सहानुभूति का चित्रण कर प्रगतिवादी साहित्यकारों ने अनेक कालजयी रचनाओं को जन्म दिया। पूँजीवाद के समाजवादी चिंतन की धारा को धार देने के लिए हिन्दी काव्य में प्रगतिवादी विचार धारा आज भी प्रासंगिक बनी हुई है।” 

काव्य में ‘प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ’ विषय परअपना सारगर्भित वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए मुख्य वक्ता डॉ. मंजु शर्मा ने कहा कि “मार्क्सवादी विचारधारा का साहित्य में उदय प्रगतिवाद के रूप में उदय हुआ। यह विचारधारा समाज को दो वर्गों में देखती है शोषक और शोषित। प्रगतिवादी शोषक या पूँजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ एक आवाज़ है जो समाज के दूसरे तबक़े अर्थात्‌ शोषित या सर्वहारा वर्ग में चेतना लाने के लिए उठी। प्रगतिवादी विचारधारा शोषित वर्ग को संगठित कर समाज में चेतना लाने का काम कर रही थी। प्रगतिवाद इसी तरह धर्म की रूढ़िवादिता को दूर फेंक मानवता की अपरिमित शक्ति में विश्वास करता है। प्रगतिवादी कविता यथार्थ चित्रण पर बल देती है, कल्पना पर नहीं।” 

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. राशि सिन्हा ने कहा कि “प्रगतिवाद एक ऐसी विचारधारा एवं एक ऐसा स्वस्थ दृष्टिकोण है जिसने विरोध के स्वर को काव्य बिंब में पिरोकर प्रगतिशील सृजन की एक ऐसी नींव डाली जिसने समाज में न सिर्फ़ साम्यवाद का उद्घोष किया, बल्कि आगे भी सृजन की चेतना में सामाजिक यथार्थ बोध-भावों को स्थापित किया। भाषाई चेतना को छायावाद के ‘सॉफिस्टिकेटेड’ प्रयोग से निकालकर रचनात्मकता के स्तर पर एक सर्वहारा प्रकृति की ओर उन्मुख कर नई कविता और आधुनिक काव्य सृजन को प्रभावित करते हुए नई राह दिखाई।” 

परिचर्चा के अध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी वक्तव्यों के सारांश पर अपनी महत्त्वपूर्ण टिप्पणी देते हुए कहा कि, “प्रगतिवाद का जन्म बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में तेज़ी से बदलती राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के प्रभाव से बदली भारतीय जनता की चित्तवृत्ति का सहज परिणाम था, जिसे मार्क्सवादी विचारधारा ने प्रेरित किया था। उन्होंने हिंदी की प्रगतिवादी कविता की प्रवृत्तियों की चर्चा करते हुए यह भी जोड़ा कि आज भले ही विश्व भर में साम्यवादी राज्य-व्यवस्था का प्रयोग असफल हो गया हो, एक आर्थिक दर्शन के रूप में मार्क्सवाद आज भी प्रासंगिक है; तथा जब तक समाज में वर्ग-भेद और वर्ग-संघर्ष विद्यमान है, तब तक प्रगतिवादी कविता भी क्रांति की प्रेरणा बन कर जीवित रहेगी।”

तत्पश्चात् काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर सृजित सुंदर-सरस रचनाओं का काव्यपाठ करके वातावरण को ख़ुशनुमा बना दिया। श्रीमती विनीता शर्मा (उपाध्यक्ष) शिल्पी भटनागर, श्री रामकिशोर उपाध्याय, डॉ राशि सिन्हा, सरिता दीक्षित, डॉ. रमा द्विवेदी, ममता जायसवाल, डॉ. संगीता शर्मा, प्रियंका पाण्डे, रमा गोस्वामी, तृप्ति मिश्रा, इंदु सिंह, डॉ. स्वाति गुप्ता, सरला प्रकाश भूतोड़िया, दीपा कृष्णदीप सभी रचनाकारों ने बहुत उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ में बहुत सुन्दर एवं सन्देश युक्त रचनाओं का पाठ किया किया एवं सभी की रचनाओं की सराहना करते हुए सभी को शुभकामनाएँ प्रेषित कीं। 

डॉ. आशा मिश्रा, रामनिवास पंथी (रायबरेली) दर्शन सिंह, सुभाष सिंह (कटनी) भावना मयूर पुरोहित, दीपक दीक्षित तथा राजेश कुमार सिंह श्रेयस (अध्यक्ष, युवा उत्कर्ष इकाई, लखनऊ) ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज की। 

प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) द्वितीय सत्र का संचालन दीपा कृष्णदीप (महासचिव) ने किया। डॉ. सुषमा देवी आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ। 

प्रेषक: डॉ. रमा द्विवेदी, अध्यक्ष (युवा उत्कर्ष)