युवा उत्कर्ष संगोष्ठी संपन्न: ‘रांगेय राघव: हिंदी के लिक्खाड़ लेखक’

24 Jan, 2023

युवा उत्कर्ष संगोष्ठी संपन्न: ‘रांगेय राघव: हिंदी के लिक्खाड़ लेखक’

युवा उत्कर्ष संगोष्ठी संपन्न: ‘रांगेय राघव: हिंदी के लिक्खाड़ लेखक’

युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की दशम ऑनलाइन संगोष्ठी 21 जनवरी 2023 (शनिवार) संध्या 4:00 बजे से आयोजित की गई। 

डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। विशेष अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश कुमार सिन्हा जी (दिल्ली) एवं मुख्य वक्ता साहित्यकार डॉ संगीता शर्मा मंचासीन हुए। 

कार्यक्रम का शुभारंभ पूनम जायसवाल के द्वारा सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने अतिथियों का परिचय, स्वागत भाषण एवं संस्था का परिचय दिया। विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. रमा द्विवेदी ने कहा—रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिंदी अनुवाद करके उनका परिचय हिंदी साहित्य से करवाया और वे नाटक आज भी सर्वश्रेष्ठ नाटक माने जाते हैं। इसलिए उन्हें हिंदी का शेक्सपियर भी कहा जाता है। 

वे स्त्रियों का बहुत सम्मान करते थे और उनके स्त्री पात्र बहुत मज़बूत और सशक्त हैं। अतः उन्होंने अपने अधिकांश उपन्यासों के नाम उस कथा की नायिका के नाम पर रखे, जैसे : लोई का ताना, रत्ना की बात, यशोधरा जीत गई, देवकी का बेटा, लखिमा की आँखें, भारती का सपूत। रांगेय राघव जी तमिल कुल के अद्भुत हिंदी साहित्यकार थे। 

प्रथम सत्र “अनमोल एहसास” और “मन के रंग मित्रों के संग” दो शीर्षक के अंतर्गत संपन्न हुआ। 

प्रथम सत्र के प्रथम भाग अनमोल अहसास के अंतर्गत “रांगेय राघव: हिंदी के लिक्खाड़ लेखक” विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। 
मुख्य वक्ता डॉ. संगीता शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि रांघेय राघव 13 साल की उम्र में लिखना शुरू किया और 39 साल की अल्पायु में ही 150 कृतियों की रचना की थी। उनकी बेमिसाल लेखकीय प्रतिभा का ही कमाल है कि साहित्य की हर विधा पर अपनी लेखनी चलाई। वे कहते हैं कि ‘जीवन की विषमताओं को रटना मेरा ध्येय नहीं बल्कि उन्हें मिटाना ही मेरा उद्देश्य है’। उनके लेखन में नए और पुराने दोनों का सम्मिश्रण मिलता है। भारतीय समाज में यह विख्यात है कि वे दोनों हाथों से लिखते थे, वे तंत्र सिद्ध थे इसलिये उन्हें हिंदी साहित्य जगत का लिक्खाड़ लेखक कहा जाता है। 

विशेष अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश कुमार सिन्हा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि रांघेय राघव मूलतः दक्षिण भारतीय होकर तथा शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी होते हुए भी रांघेय राघव को हिंदी से अगाध प्रेम था और इसी को उन्होंने अपने लेखन की भाषा बनाया। विषम आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद परिवार की साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ाने एवं लेखन के प्रति उनके पूर्ण समर्पण के कारण उन्होंने स्वतंत्र रूप से लेखन को ही अपनी आजीविका का साधन बनाया। मनुष्य के जीवनगत यथार्थ, उसकी पीड़ा को उजागर करने तथा सामाजिक विषमता व वर्ग-संघर्ष से त्रस्त मानवता को मुक्ति दिलाने के लिए वे साहित्य की विभिन्न विधाओं में जीवन के अंतिम क्षणों तक लिखते रहे। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर लिखने के जुनून में उन्होंने कभी अपने शरीर की चिंता नहीं की और उनका गिरता स्वास्थ्य ही अंततः अल्पायु में उनकी मत्यु का कारण बना। 

तत्पश्चात मन के रंग मित्रों के संग में सुपरिचित साहित्यकार संतोष रजा जी ने अपना प्रेरक प्रसंग सुनाया। अपने प्रसंग में उन्होंने अपनी स्वयं की घटना का उल्लेख किया जिससे हम सब को गर्व महसूस हुआ कि ऐसे लोग भी हैं जो दूसरों के लिए दया, करुणा और प्रेम का भाव रखते हैं वो आज हमारे बीच हम सब के मित्र हैं। 

अध्ययक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) ने सफल कार्यक्रम की शुभकामनाएँ दीं और विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि रांगेय राघव अपने समय के एक ऐसे साहित्यकार हैं जिन्होंने हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में प्रभूत लेखन किया। उन्होंने कई नूतन परंपराओं का सूत्रपात भी किया । लिखने का उनके भीतर जुनून था। वे उन विरले साहित्यकारों में शुमार हो गये जिनके विषय में कहा जाता है कि वे लेखनी पकड़ कर पैदा हुए । उनकी विलक्षण लेखन-प्रतिभा के अनेक उदाहरण हैं। प्रसिद्ध उपन्यास ‘कब तक पुकारूँ’ को उन्होंने एक महीने से कम समय में लिख डाला था । उन्होंने समाज, संस्कृति एवं मानवीय पहलुओं को लेखन की अंतर्वस्तु के ग्रहण करते हुए अपनी कहानियों और उपन्यासों में सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक शोषण को बख़ूबी उकेरा। उनकी कहानी “गदल” बहुत लोकप्रिय हुई । मार्क्सवादी होते हुए भी वे जड़ मार्क्सवाद के पैरोकार कभी नहीं रहे। 

दुर्भाग्यवश हिन्दी साहित्य ने उन्हें उनका उचित स्थान नहीं दिया। इस शताब्दी वर्ष में हम सभी का दायित्व है कि रांगेय राघव के साहित्यिक अवदान को यथोचित स्थान दिलायें। यही उस महान साहित्यकार के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

तत्पश्चात दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। 

उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर काव्य पाठ करके कार्यक्रम को हर्षोल्लास से भर दिया। डॉ. ममता श्रीवास्तव सरुनाथ (दिल्ली), भावना पुरोहित, डॉ. सुषमा देवी, सुनीता लुल्ला, विनीता शर्मा, डॉ. जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ), सी पी दायमा, किरण सिंह, डॉ. रमा द्विवेदी, दीपा कृष्णदीप, डॉ. संगीता शर्मा, संजीव चौधरी (कोलकता) संतोष रजा, रमा गोस्वामी ने काव्य पाठ किया। अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय जी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया एवं सभी रचनाकारों को शानदार काव्यपाठ के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित कीं। 

अवधेश कुमार सिन्हा (दिल्ली), लावण्या इनागंती, कुंतल श्रीवास्तव (मुंबई) पूनम जायसवाल, डॉ. सुरभि दत्त, मोहिनी गुप्ता एवं डॉ. पी. के. जैन जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। 

संगोष्ठी का संचालन दीपा कृष्णदीप ने किया। किरण सिंह जी के आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। 

—डॉ. रमा द्विवेदी

शाखा अध्यक्ष/ युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच

युवा उत्कर्ष संगोष्ठी संपन्न: ‘रांगेय राघव: हिंदी के लिक्खाड़ लेखक’