
भाषा दीवार बनाती नहीं, दीवार तोड़ती है: अनिल शर्मा जोशी
(कश्मीर में हिंदी)
ग्रेटर नोएडा, 26 मई 2024: विश्व-स्तर पर हिंदी भाषा और साहित्य का परचम लहराने के लिए भारत समेत कुछ महत्त्वपूर्ण संस्थाओं ने ख़ास पहलक़दमी की है। विश्व हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वातायन-यूके और भारतीय भाषा मंच के सम्मिलित सहयोग से वैश्विक हिंदी परिवार ने हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में जन-जन की ज़बान पर आरूढ करने का बीड़ा उठा रखा है। इसमें देश-विदेश के साहित्यकारों और भाषाविदों को एक मंच पर लाकर एक सशक्त उपक्रम को स्थायी आधार प्रदान किया जा रहा है। ऐसी आशा की जा रही है कि यह अभियान एक आंदोलन का रूप ले लेगा जिससे हिंदी अक्षांश और देशान्तर को लाँघते हुए भारतीय विरासत और संस्कृति को उल्लेखनीय विस्तार देगी।
दिनांक 26 मई 2024 को इसी अभियान के एक उपक्रम के रूप में वैश्विक हिंदी परिवार ने एक ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया। इस आयोजन के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के प्रदेशवासियों के हृदय में हिंदी की धड़कन को मापने का श्लाघ्य प्रयास किया गया—बाक़ायदा एक विचार-मंच का संयोजन करके। इस मंच के सूत्रधार थे, जाने-माने साहित्यकार और हिंदी प्रचारक श्री अनिल शर्मा जोशी। इस मंच का विचारार्थ विषय था—‘कश्मीर में हिंदी: वितस्ता-विमर्श और ई-पत्रिका का लोकार्पण’।
संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए ख्यात कवयित्री और मंच-संचालक, सुश्री अलका सिन्हा ने इस कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। तदनंतर, कश्मीर विश्वविद्यालय में हिंदी अधिकारी के रूप में कार्यरत डॉ. मुदस्सिर अहमद भट्ट ने मंच का सुविध और कुशल संचालन करते हुए श्री अनिल शर्मा जी के प्रति आभार व्यक्त किया जिनके बदौलत कश्मीर में हिंदी के प्रचार-प्रसार से संबंधित ऐसी संगोष्ठी की संकल्पना ने मूर्त रूप लिया। हिंदी शिक्षिका डॉ. सकीना अख़्तर ने अपने वक्तव्य में कहा कि कश्मीर में हिंदी की स्थिति आशाजनक है; किन्तु संतोषजनक नहीं है। कश्मीर में हिंदी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाने की ज़रूरत है। कश्मीर की हिंदी लेखिका डॉ. मुक्ति शर्मा ने कहा कि राज्य के कॉलेजों और स्कूलों में हिंदी शिक्षण की स्थिति निराशाजनक है तथा छोटी कक्षाओं में स्कूली बच्चों से हिंदी शिक्षण की शुरूआत की जानी चाहिए। कश्मीर के लोग हिंदी बोलना और सीखना पसंद करते हैं और कश्मीर-पर्यटन के दौरान लोगबाग हिंदी का प्रयोग करते हैं। ई-पत्रिका की संपादक तथा कश्मीर विश्वविद्यालय में हिंदी की व्याख्याता, सुश्री अमृता सिंह ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं एवं उनके राज्य में हिंदी पत्रिकाओं की चर्चा होती रहती है।
संगोष्ठी के अगले चरण में ई-पत्रिका ‘वितस्ता’ का लोकार्पण किया गया। डॉ. मुदस्सिर ने इस पत्रिका का विस्तृत परिचय दिया। कश्मीर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. रूबी जुत्शी ने कश्मीर की भाषाई और संस्कृतिक विरासत की चर्चा करते हुए कहा कि कश्मीर में अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी में भी इषदेव के गीत गाए जाते हैं। भारतीय भाषा मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजेश्वर कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली एक कड़ी है। कश्मीर हिंदी के आचार्यों की भूमि रही है जबकि यहाँ उर्दू को थोपा गया है। उन्होंने कहा कि राज्य की कश्मीरी, डोगरी, लद्दाखी, गुज्जरी जैसी भाषाओं को देवनागरी लिपि में लिखकर हिंदी भाषा को जनप्रिय बनाया जा सकता है। राज्य में दक्षिण भारत के विपरीत हिंदी-विरोध नहीं है। हिंदी के ज़रिए संस्कृत की शब्दावलियों का प्रयोग करके हम अपनी परंपरा से जुड़ सकते हैं। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और सामाजिक कार्यकर्ता श्री इंद्रेश कुमार ने कहा कि उन्होंने राज्य में आतंकवाद के दौर में, कोई 600 गाँवों का भ्रमण किया है जहाँ उन्होंने भाषाई एकता की लहर देखी है। उन्होंने बताया कि कश्मीर अपनी सुंदर भाषाई और सांस्कृतिक विरासत के कारण भारत की जन्नत है और भारत विश्व की नज़र में जन्नत है। हिंदी का प्रचुर प्रयोग करके ग़लतफ़हमियों को दूर किया जा सकता है; अमन-चैन बहाल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कश्मीर में पंचांग को हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में तैयार किया जाता है।
श्री अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि जिस हिंदी के सम्बन्ध में एक समुदाय बनाया गया है, उसके लिए सेतु तैयार करने का काम माननीय इंद्रेश कुमार ने किया है। उन्होंने हिंदी के विकास में तकनीकी के प्रयोग पर बल दिया। कश्मीर में हिंदी के साथ-साथ सभी भाषाओं के विकास की बात सोचनी होगी। भाषा दीवार नहीं बनाती; यह तो दीवार तोड़ती है। प्रख्यात कवि सतीश विमल ने अपने वक्तव्य में बताया कि कश्मीर राज्य शारदा पीठ और संस्कृत भाषा का केंद्र रहा है। यहाँ भाषाओं का पालन-पोषण हुआ है तथा ज्ञान को विस्तारित किया गया है। यह राज्य बहुभाषी है और कश्मीरी लोग भी बहुभाषी हैं। इसे सरकार द्वारा हिंदीतर राज्य घोषित किया गया है जबकि यह क्षेत्र हिंदीभाषी है। लोग भले ही देवनागरी लिपि से अपरिचित हैं लेकिन वे हिंदी भली-भाँति समझते-बोलते हैं।
यह संगोष्ठी दो घंटे तक अविराम चलती रही और बड़ी संख्या में श्रोता-दर्शक इससे आद्योपांत जुड़े रहे। वेकटेश्वर राव के विस्तृत धन्यवाद-ज्ञापन के साथ इस संगोष्ठी का समापन हुआ।
(प्रेस रिपोर्ट—डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)