प्रो. रेखा शिक्षण जगत की एक शख़्सियत हैं–अनिल शर्मा जोशी

04 Mar, 2024

प्रो. रेखा सेठी के व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व पर विशद चर्चा

प्रो. रेखा शिक्षण जगत की एक शख़्सियत हैं–अनिल शर्मा जोशी


(‘वातायन-यूके’ की 168वीं संगोष्ठी का आयोजन) 

लन्दन, दिनांक 02-03-2024: ‘वातायन-यूके’ के तत्वावधान में दिनांक 02-03-2024 को इस वैश्विक मंच की 168वीं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के अंतर्गत, दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय की पूर्व-कार्यकारी प्राचार्य और हिंदी साहित्य की यशस्वी साधक प्रो. रेखा सेठी के व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व पर विशद चर्चा हुई। 

लंदन की कवयित्री सुश्री आस्था देव ने मंच संचालन करते हुए प्रो. रेखा के सम्बन्ध में कहा कि उनकी साहित्य-साधना अनुकरणीय और प्रशंसनीय है। उनके साहित्यिक अवदान को साधारण शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता। मिर्ज़ा ग़ालिब के दिल्ली-स्थित मोहल्ले–बल्लीमारां के बिल्कुल क़रीब रहने वाली प्रो. रेखा ने आस्था देव की जिज्ञासा को शांत करते हुए बताया कि उनकी हिंदी में दिलचस्पी वर्ष 1982 में पैदा हुई जबकि वे एक क्रिश्चियन स्कूल की छात्रा थीं। उसके पश्चात, वे कॉलेज में प्रख्यात साहित्यकार इंदु जैन जी के सान्निध्य में आईं; तदुपरांत, उनमें हिंदी भाषा और साहित्य की समझ पैदा हुई। उन्होंने जर्मनी, अमरीका जैसे देशों में अपने अनुभवों को साझा करते हुए श्रोताओं का समुचित ज्ञान-वर्धन किया। 

वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार, श्री अनिल शर्मा जोशी की अध्यक्षता में इस ‘हिंदी सेवी शृंखला-2’ की संगोष्ठी में आस्था देव ने ही प्रो. रेखा से उनके सृजन-कर्म, निजी जीवन और साहित्यिक गतिविधियों के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न पूछे। उन्होंने कहा कि प्रो. रेखा का हस्तक्षेप मौलिक लेखन, संपादन, आलोचना, मीडिया-अध्ययन जैसे क्षेत्रों में है। इस पर, प्रो. रेखा ने बताया कि वे नई और चुनौतीपूर्ण चीज़ों को करने की कोशिश करती हैं। विज्ञापन पर लिखी गई उनकी हिंदी पुस्तक में उनकी कोशिश रही है कि इसमें कॉनसेप्ट और प्रोडक्शन के सम्बन्ध में चर्चा की जाए क्योंकि इसका सरोकार इंडस्ट्री से होता है और छात्र को इसी इंडस्ट्री में कार्य करना होता है। गत वर्ष वे लंदन में आयोजित भारोपीय हिंदी महोत्सव में प्रतिभागिता करने के बाद अमरीका की ड्यूक यूनिवर्सिटी गई थीं जहाँ उन्होंने हिंदी के विदेशी छात्रों से भी विभिन्न विषयों पर संवाद किया। उन्होंने बताया कि ड्यूक तथा विंस्टन विश्वविद्यालयों में हिंदी से सम्बन्धित भारतीय लेखकों पर एडवांस पाठ्यक्रम को अंग्रेज़ी में पढ़ाया जाता है। जब आस्था देव ने प्रो. रेखा के वर्तमान रचना-कर्म के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि स्वयं द्वारा संपादित एक पुस्तक में वे हिंदी कवयित्रियों की कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद कर रही हैं। इसके अतिरिक्त वे भारत की ही अंग्रेज़ी कवयित्रियों की अंग्रेज़ी कविताओं के हिंदी रूपांतर का भी एक संकलन तैयार कर रही हैं। उनकी तीसरी संपादित पुस्तक प्रेस में है जिसका विषय स्त्री-चिंतन और विमर्श है; यह पुस्तक इसी विषय पर विभिन्न लेखकों के निबंधों का संकलन है। उन्होंने कहा कि उन्हें अनुवाद-कार्य में बहुत आनंद आता है। तदनंतर, मंच पर उपस्थित अंतरीपा ठाकुर-मुखर्जी ने प्रो. रेखा द्वारा अनूदित और विरचित कविताओं का पाठ भी किया। सुश्री अश्विनी किन्हकर ने भी प्रो. रेखा के लिखे हुए के कुछ अंश का वाचन किया। 

प्रो. रेखा ने स्त्रियों के विषय में बात करते हुए कहा कि संविधान-निर्माण में सरोजिनी नायडु, हंसा मेहता जैसी स्त्रियाँ भी थीं जिन्होंने स्त्रियों के आरक्षण के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा था कि उन्हें बस, सम्मानपूर्वक देखा जाना चाहिए; उन्हें स्त्री आरक्षण की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। उन्होंने मंच पर उपस्थित सुश्री शैल अग्रवाल द्वारा उठाए गए बिंदु के प्रत्युत्तर में स्वातंत्र्योत्तर भारत में स्त्रियों के संघर्ष और देश के आधे संसाधनों पर स्त्रियों के अधिकार के सम्बन्ध में भी प्रतिक्रिया की। बताया कि स्त्रियाँ बहुत बाद में आरक्षण की आग्रही बनी है। तदनंतर, डॉ. शैलजा सक्सेना ने कहा कि प्रो. रेखा के साथ उनका सम्बन्ध बहुत आत्मीय रहा है क्योंकि यूनिवर्सिटी के समय से ही वे उनसे परिचित रही हैं। उन्होंने कहा कि प्रो. रेखा जिस आत्मीय शैली से आलोचना के गहरे समुद्र में उतरती हैं, वह बहुत नयापन लिए हुए होता है। श्री निखिल कौशिक ने भी प्रो. रेखा के सम्बन्ध में अपने उद्गार व्यक्त किए। 

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि प्रो. रेखा शिक्षण जगत की एक शख़्सियत हैं जिन्हें देश-दुनिया में घटित नवीनतम घटनाओं के सम्बन्ध में जानकारियाँ हैं। उन्होंने तीन प्रख्यात लेखकों नामत: मुंशी प्रेमचंद, हरिशंकर परसाई और बाल मुकुंद गुप्त पर केंद्रित एक पुस्तक लिखी है और उन्हें ऐसे निबंध पढ़ना अच्छा लगता है। श्री जोशी ने प्रो. रेखा के अनुवाद-कार्य की भी चर्चा की। इस संगोष्ठी की सूत्रधार तथा ‘वातायन-यूके’ की संस्थापक दिव्या माथुर ने कहा कि प्रो. रेखा के साहित्यिक योगदान के सम्बन्ध में एक और संगोष्ठी आयोजित की जानी चाहिए। 

कार्यक्रम का समापन करते हुए सुश्री अंतरीपा ठाकुर-मुखर्जी ने प्रो. रेखा को अपनी साहित्यिक यात्रा के सम्बन्ध में इतनी सघनता से परिचय देने के लिए तहे-दिल से धन्यवाद दिया। उन्होंने श्री अनिल शर्मा जोशी को उनके विशिष्ट अध्यक्षीय वक्तव्य के लिए आभार प्रकट किया। उन्होंने संगोष्ठी के प्रतिभागियों समेत, ज़ूम और यूट्यूब के माध्यम से आद्योपांत जुड़े हुए सभी श्रोता-दर्शकों को भी धन्यवाद ज्ञापित किया। चलते-चलते इस संगोष्ठी में तकनीकी सहयोग देने वाली सुश्री शिवि श्रीवास्तव की महत्त्वपूर्ण भूमिका की भी सराहना की। 

— डॉ. मनोज मोक्षेंद्र 

प्रो. रेखा सेठी के व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व पर विशद चर्चा