वातायन वैश्विक गोष्ठी–162

06 Jan, 2024
वातायन वैश्विक गोष्ठी–162

वातायन वैश्विक गोष्ठी–162

दो देश दो कहानियाँ (भाग-14)

लंदन, 31-12-2023: ‘वातायन-यूके’ के तत्वावधान में दिनांक 30 दिसंबर, 2023 को 162 वीं संगोष्ठी का आयोजन आभासी मंच पर किया गया। वर्ष 2023 की इस समापन संगोष्ठी को ‘दो देश दो कहानियाँ (भाग-14)’ के रूप में आयोजित किया गया। इसके अंतर्गत, अमेरिका की डॉ. कुसुम नैपसिक तथा भारत के शुभम नेगी ने अपनी-अपनी कहानियों का सुरुचिपूर्ण पाठ किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कहानीकार और आलोचक श्री राकेश बिहारी ने की जबकि प्रवासी लेखिका डॉ. शैलजा सक्सेना इस संगोष्ठी की सूत्रधार थीं। वास्तव में, ‘दो देश दो कहानियाँ’ दो संस्थाओं नामत: ‘वातायन-यूके’ तथा ‘हिंदी राइटर्स गिल्ड-कनाडा’ की संयुक्त प्रस्तुति है जिसे कहानी विधा के रसिया पाठकों द्वारा खूब सराहा जाता है। हिन्दी साहित्य में ऐसी संगोष्ठी एक विशिष्ट प्रस्तुति के रूप में अभिलिखित किया जा रहा है। ऐसी प्रस्तुतियों से हमें यह भी पता चलता है कि भारतेतर देशों में हिंदी कहानी की क्या दशा-दिशा है। 

अस्तु, हिंदी राइटर्स गिल्ड की सह-संस्थापिका शैलजा सक्सेना ने मंच-संचालन करते हुए कहा कि भले ही इस ‘दो देश दो कहानियाँ’ शृंखला के अंतर्गत दो भिन्न-भिन्न देशों के हिंदी कथाकारों की कहानियों का पाठ और उन पर चर्चा और समीक्षा होती है, हमें यह पता चलता है कि उनकी संवेदनाएँ एक जैसी होती हैं। अमेरिका की ड्यूक विश्वविद्यालय में हिंदी की सीनियर प्राध्यापिका कुसुम नैपसिक ने ‘जीवन के रंग’ शीर्षक से अपनी कहानी का पाठ किया। इस कहानी की नायिका मौली गर्भ धारण न कर पाने की व्यथा से हताश रहती है और इसके लिए वह अपने पति डेविड को दोषी ठहराती है क्योंकि उसने ही उसे गर्भ-निरोधक गोलियाँ खिला-खिला कर उसे इस बांझपन जैसी स्थिति में ला खड़ा किया है। नि:संतानता से अभिशप्त जब उसे एक दिन जाँच में अचानक पता चलता है कि वह गर्भवती हो गई है, तो वह अपनी इस अपार ख़ुशी का साझा अपने पति और घरवालों से करना चाहती है। लेकिन, इस ख़ुशी के साथ-साथ उसकी चिंताएँ बढ़ने लगीं क्योंकि अब उसे बच्चे की परवरिश में बढ़ने वाले ख़र्चे से निपटने के लिए स्वयं आय का स्रोत तलाशना होगा। कहानी मार्मिक और हृदयस्पर्शी है तथा कथाकार सधे हाथों से लिखी गई कहानी का सुरुचिपूर्ण पाठ करती हैं। 

तदनंतर, हिमाचल प्रदेश के कथाकार शुभम नेगी जो डेटा साइंटिस्ट के रूप में मुम्बई में कार्यरत हैं, ने अपनी कहानी ‘टिफिन के माले’ में दु:ख के विभिन्न पर्यायों का उल्लेख करते हुए अपने दु:ख के स्रोत पर बातें करते हैं। कहानी आत्मबोधात्मक है जिसमें दु:ख के भाव को परत-दर-परत खोलने की कोशिश की जाती है। जब यह विश्लेषण एक बिंदु पर आकर ठहर जाता है तो आत्मकथात्मक शैली में शुभम की कहानी शुरू होती है जिसमें वह अपने ‘स्व’ को तलाशने की कोशिश करते हैं। कहानी एक बच्चे की उसके स्कूल में गतिविधियों के इर्द-गिर्द घूमती है और कथाकार उसके बाल मनोविज्ञान की पड़ताल करता है। नि:संदेह, कहानी मर्मस्पर्शी है जो आद्योपांत पाठकों को बाँधे रखती है। 

दोनों कहानियों की समीक्षा करते हुए समीक्षक राकेश बिहारी ने दोनों कथाकारों को बधाई दी और बताया कि दोनों कहानियाँ कहीं-न-कहीं आपस में दर्द के धागे से जुड़ती-सी लगती हैं। दोनों कहानियाँ बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती हैं—कुसुम की कहानी में बच्चे की प्रतीक्षा है तो शुभम की कहानी में बच्चे की तकलीफ़ दृष्टिगोचर होती है। कुसुम की कहानी में कोरोना के प्रकोप से कहानी की दिशा ही बदल जाती है। ऐसे में, कहानी स्त्री-पुरुष के पारंपरिक संबंधों को छोड़कर एक अलग दिशा में बढ़ जाती है। समीक्षक राकेश बिहारी, जब डेविड के भीतर मौज़ूद स्त्री या पुरुष मित्र की मौली के प्रति चिंता में सहभागी होने की बात का ख़ुलासा करते हैं तो ऐसा न केवल मौली के लिए ख़ुशी का कारक बनता है बल्कि इससे श्रोता-दर्शकों को भी आत्मसंतोष होता है। राकेश बिहारी ने बड़ी दक्षता और सर्वांगीणता से दोनों कहानियों के कला पक्ष और भाव पक्ष पर सधी हुई समीक्षा प्रस्तुत की तथा दोनों कथाकारों से अपेक्षा की कि वे भविष्य में भी ऐसी ही कहानियों का सृजन करते रहेंगे। इसी क्रम में उन्होंने आगे कहा कि हम भारतीय लेखकों को यह नहीं सोचना चाहिए कि संवेदनाएँ और भावनाएँ सिर्फ उन्हीं की जाग़ीर है; प्रवासी लेखकों में भी इनकी प्रचुरता है।

कार्यक्रम का समापन करते हुए शैलजा सक्सेना ने इस कहानी-पाठ के मंच पर उपस्थित प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा, ‘साहित्य कुंज’ पत्रिका के संपादक और वरिष्ठ लेखक सुमन घई और जापान के हिंदी विद्वान तोमियो मिज़ोकामी सहित जूम और यूट्यूब से जुड़े प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों के प्रति भी आभार प्रकट किया तथा नए वर्ष के आगमन पर सभी को बधाई दी।  

(प्रेस विज्ञप्ति-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)