इक्कीसवीं सदी का साहित्य विषयक एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

22 Feb, 2025
इक्कीसवीं सदी का साहित्य विषयक एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

इक्कीसवीं सदी का साहित्य विषयक एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

इक्कीसवीं सदी का साहित्य चुनौतीपूर्ण साहित्य है: प्रो. आर एस सर्राजु

मातृभाषा ही वह माध्यम है जो हमें साहित्य की जड़ों से जोड़ता है और समझने का विवेक प्रदान करता है: डॉ. आनंद कुमार

 

चेन्नई, 01 फरवरी, 2025

मेरिना कैंपस स्थित मद्रास विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित ‘21वीं सदी का साहित्य’ विषयक एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई। 

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व संकुलपति प्रो. आर एस सर्राजु ने कहा कि इक्कीसवीं सदी का साहित्य चुनौतीपूर्ण साहित्य है। यह एक ऐसा युग है जो अपने चारों ओर बहुसंस्कृतिवाद तथा तकनीकी विकास को समेटा हुआ है। डिजिटल मीडिया व नव सोशल मीडिया ने जहाँ समाज में क्रांति लाने का काम किया, वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिक परिघटनाएं साहित्य को भी प्रभावित करती हैं। 

बतौर बीज वक्ता आल इंडिया मेडिकल साइंसेस, नई दिल्ली के पूर्व प्रोफ़ेसर प्रो. आनंद कुमार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के हवाले से अपने वक्तव्य में कहा कि मातृभाषा ही वह माध्यम है जो हमें साहित्य की जड़ों से जोड़ता है और समझने का विवेक प्रदान करता है। उन्होंने जायसी और उनकी प्रसिद्ध रचना ‘पद्मावत’ की बात करते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं में जायसी जैसे अनेक साहित्यकार हुए हैं जिनका मूल्यांकन करना शेष है और उन्होंने यह आशा व्यक्त की कि इक्कीसवीं सदी का साहित्य ऐसे रचनाकारों और रचनाओं को केंद्र में ज़रूर लाएगा। 

दक्षिण एशियायी भाषा व संस्कृति विभाग, गुआंग्डोंग यूनिवर्सिटी ऑफ़ फॉरेन स्टडीज़, चीन के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी भारतीय संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट किया कि साहित्य संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में सफल है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भाषा, संस्कृति और संस्कार के मिश्रण से एक अद्भुत संसार का निर्माण किया जा सकता है। 

बेलफ़ास्ट, आयरलैंड के कवि-साहित्यकार-पत्रकार डॉ. अभिषेक त्रिपाठी ने कहा कि इक्कीसवीं सदी का साहित्य मानवीय संवेदना का साहित्य है। मनुष्य को जागृत करने का साहित्य है। परस्पर सहयोगिता का साहित्य है। उन्होंने प्रवासी साहित्य के माध्यम से ज़ोर देकर कहा कि इक्कीसवीं सदी के साहित्य में पहचान और व्यक्तित्व की जटिलताओं का अन्वेषण किया जा रहा है। 

उद्घाटन सत्र का संचालन पीएच.डी. शोधार्थी सुश्री ज्योति मेहता ने किया और धन्यवाद ज्ञापन सुश्री दीपा खवासे ने किया। कार्यक्रम के आरंभ में डॉ. चिट्टि अन्नपूर्णा ने अतिथियों का स्वागत किया। 

इस संगोष्ठी में कुल तीन विचार सत्रों में 25 प्रपत्र प्रस्तुत किए गए। डॉ. आनंद कुमार की अध्यक्षता में संपन्न प्रथम विचार सत्र के समीक्षक थे डॉ. आर एस सर्राजु और सत्र को संचालित किया डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी ने। इस सत्र में इक्कीसवीं सदी के कथा साहित्य में चित्रित प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला गया है। 

केरल विश्वविद्यालय की विभागाध्यक्ष डॉ. एस आर जयश्री की अध्यक्षता में संपन्न द्वितीय विचार सत्र में इक्कीसवीं सदी में उभरते हुए विमर्शों पर विचार व्यक्त किया गया। इस सत्र के समीक्षक थे डॉ. अभिषेक त्रिपाठी और डॉ. नीरजा गुर्रमकोंडा ने सत्र को संचालित किया। 

तृतीय विचार सत्र डॉ. ए भवानी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इस सत्र के समीक्षक थे डॉ. बी एल अच्छा और संचालक डॉ. शशिप्रभा जैन। 

इस अवसर पर डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन की पुस्तक ‘महाभारत’ और डॉ. अभिषेक त्रिपाठी की पुस्तक ‘आयरलैंड की लोककथाएं’ का विमोचन हुआ। 

प्रस्तुति:
डॉ. नीरजा गुर्रमकोंडा
सह संपादक ‘स्रवंति’
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
टी. नगर, चेन्नै–600017