नदलेस ने की अनामिका सिंह अना के नवगीत संग्रह ‘न बहुरे लोक के दिन’ पर परिचर्चा

06 May, 2024
नदलेस ने की अनामिका सिंह अना के नवगीत संग्रह ‘न बहुरे लोक के दिन’ पर परिचर्चा

नदलेस ने की अनामिका सिंह अना के नवगीत संग्रह ‘न बहुरे लोक के दिन’ पर परिचर्चा

दिल्ली। नव दलित लेखक संघ ने अनामिका सिंह ‘अना’ के नवगीत गीत संग्रह ‘न बहुरे लोक के दिन’ पर ऑनलाइन परिचर्चा गोष्ठी आयोजित की। मुख्य वक्ता के तौर पर वीरेंद्र आस्तिक, पूर्णिमा वर्मन और जगदीश पंकज के अतिरिक्त नवगीतकार अनामिका सिंह ‘अना’ उपस्थित रही। साथ ही विशेष टिप्पणी के लिए सुभाष वशिष्ठ उपस्थित रहे। गोष्ठी की अध्यक्षता बंशीधर नाहरवाल ने की एवं संचालन डॉ. अमित धर्मसिंह ने किया। अनुपा आदि, डॉ. ईश्वर राही, रेनू गौर, अजय यतीश, ज़ालिम प्रसाद, मामचंद सागर, बी एल तोंदवाल, अशोक पाल सिंह, डॉ. रामावतार सागर, डॉ. प्रिया राणा, जोगेंद्र सिंह, डॉ. घनश्याम दास, डॉ. विक्रम सिंह, बिभाष कुमार, आर. पी. सोनकर, डॉ. सुमित्रा, अमित रामपुरी, फूलसिंह कुस्तवार, चितरंजन गोप लुकाटी, भीष्म देव आर्य, जगतराम दाहरे, पुष्पा विवेक, डॉ. गीता कृष्णांगी, राधेश्याम कांसोटिया और हुमा ख़ातून आदि गणमान्य रचनाकार उपस्थित रहे। सर्वप्रथम उपस्थित सभी साहित्यकारों ने अपना-अपना संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया ताकि एक दूसरे से अनौपचारिक परिचय हो सके। अनामिका सिंह अनामिका और वक्ताओं का शाब्दिक परिचय डॉ. अमित धर्मसिंह ने प्रस्तुत किया। तत्पश्चात् अनामिका सिंह ‘अना’ के दो नवगीतों के सुमधुर गान से गोष्ठी का आग़ाज़ हुआ। 

पूर्णिमा वर्मन ने कहा, “अनामिका सिंह अना के नवगीत जन-सरोकार से जुड़े गीत हैं। ये इतनी सधी हुई भाषा में रचे गए हैं कि इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता है। मानव-जीवन और प्रकृति को विषय बनाकर लिखे गए ये नवगीत किसी भी पाठक को मोह लेने का दम रखते हैं।” जगदीश पंकज ने कहा, “इन नवगीतों में अनामिका ने इतने-इतने अर्थ भर दिए हैं कि न सिर्फ़ लाइनों में बल्कि ‘बिटवीन द लाइंस’ के बीच छिपे अर्थ को भी समझना ज़रूरी हो जाता है। अनामिका ने भाषा और कथ्य दोनों स्तर से नवगीतों में अभिनव प्रयोग किए हैं। वे अपने एकमात्र नवगीत संग्रह न बहुरे लोक के दिन से ही चर्चित नवगीतकार हो गई है।” वीरेंद्र आस्तिक ने कहा, “मैं अनामिका से पूर्व में परिचित नहीं था लेकिन जब उनके नवगीत संग्रह की भूमिका लिखने को मिली तो मुझे उनकी रचनाशीलता देखकर सुखद आश्चर्य की अनुभूति हुई। अनामिका ने न सिर्फ़ कथ्य की नई ज़मीनें तलाश की हैं बल्कि भाषा का अपना ही नया मुहावरा भी गढ़ा है। इस कारण इनके बहुत से नवगीत ऐसे बन पड़े हैं जिनमे कालजयी होने की बहुत अधिक सम्भावना दिखाई पड़ती है।” सुभाष वशिष्ठ ने विशेष टिप्पणी में कहा, “अनामिका के नवगीत एक बार नहीं बार-बार पढ़े जाने की माँग करते हैं। उनसे हर बार कुछ नया अर्थ उभरकर सामने आता है। निश्चित ही वे आगे चलकर अग्रणी पंक्ति की नवगीतकार साबित होंगी।” अनामिका सिंह अना ने लेखकीय वक्तव्य में कहा, “मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मैंने इतने अच्छे नवगीत लिखे हैं जैसे कि आज के वक्ताओं ने बताए। मैंने इतनी बढ़िया गोष्ठी के होने की भी कल्पना नहीं की थी। इसके लिए मैं नदलेस की पूरी टीम ख़ासकर जगदीश पंकज और डॉ. अमित धर्मसिंह जी की विशेष रूप से आभारी हूँ।” अध्यक्षता कर रहे बंशीधर नाहरवाल ने कहा कि इतनी सुंदर पुस्तक के लिए अनामिका सिंह ‘अना’ को और इतनी बढ़िया परिचर्चा गोष्ठी के लिए नदलेस को हृदय से बधाई दी जाती है।” नवगीतकार सहित सभी वक्ताओं और श्रोताओं का अनौपचारिक धन्यवाद ज्ञापन मामचंद सागर ने किया। 

डॉ. अमित धर्मसिंह