मेरे आराध्य!
परित्याग से पहले
मुझे कह सकते थे,
या सह सकते थे;
लोगों की झूठ फैलाई
मेरी कलंक कथा,
या पूछ सकते थे मुझसे मेरी व्यथा;
किन्तु ये स्वांग रचाना,
एक ओजहीन अहं को बचाना;
शोभा नहीं देता।
जब गूँज करेगा
निश्छल वात्सल्य मेरा,
होगा शिथिल सवेरा;
हृद में उठती हूक को
निःशब्द बने मूक
रोकोगे कैसे,
अविरल अश्रुधारा को टोकोगे कैसे;
कैसे कह सकोगे
समाज के दबाव में,
ओजहीन अहं के प्रभाव में;
अभी भी
तुम मुझे त्याग नहीं सके,
स्नेहिल पुकार से भाग नहीं सके;
स्वयं को न छलो आराध्य!