सन्नाटे में शोर बहुत: प्यार, धार और विश्वास की ग़ज़ल

01-03-2024

सन्नाटे में शोर बहुत: प्यार, धार और विश्वास की ग़ज़ल

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

पुस्तक का नाम: सन्नाटे में शोर बहुत है
शायरा: अंजू केशव
प्रकाशक: लिटिल वर्ल्ड पब्लिकेशंस नई दिल्ली-2
प्रकाशन वर्ष: 2024
पृष्ठ: 128, 
मूल्य: ₹210/-

‘सन्नाटे में शोर बहुत है’, अंजू केशव की ग़ज़लों का पहला संकलन है, पर इस ग़ज़ल की पुख़्तगी को देखते हुए ऐसा नहीं लगाता कि यह अंजू केशव का पहला संग्रह है। उन्होंने अपने आत्मकथ्य में यह स्वीकारा है कि साहित्य के प्रति उनकी दिलचस्पी ग़ज़ल को पढ़ते हुए हुई। तब यह पता नहीं था कि एक पाठक आने वाले वक़्त में ग़ज़ल की एक मक़बूल शायरा बनकर उभरेगी। उनकी ग़ज़लों को पढ़ते हुए यह सहसा अंदाज़ा लगता है कि उनकी ग़ज़लें रवायती ग़ज़लों से काफ़ी अलग-थलग है। आमतौर पर स्त्री की कविताओं और ग़ज़लों का जो फलक और विस्तार है, उस प्रेम, पीड़ा और परंपरा से इनकी ग़ज़लें काफ़ी मुख़्तलिफ़ हैं। उन्होंने अपनी शायरी में न इश्क़ के क़िस्से सुनाये हैं और न ही निजी तकलीफ़ को शायरी का जामा पहनाया है। उनकी शायरी में जो दुख है, पीड़ा है, नाराज़गी है, आक्रोश और लड़ाई है, वह समाज और शासन तंत्र से निकल कर सामने आया है। शायरा को पता है कि यह रास्ते कठिन हैं, पर उनके हौसले बुलंद हैं। उनकी पहली ही ग़ज़ल का एक शेर है:

सूरज बनने के रस्ते पर
अँधियारा घनघोर बहुत है

उन्होंने शायरी को समझा है, वर्षों इसकी गुत्थी सुलझाई है, और तब जाकर एक शायरा के तौर पर अपने आप को प्रस्तुत किया है। शायद यही वजह है कि वह बिल्कुल बेबाकी से कह पाती हैं:

बे तुके बयानों को शायरी समझिए मत
कुछ भी अर्ज़ करने को लाज़िमी समझिए मत

यहाँ तक कि जब उनकी शायरी में इश्क़े मिज़ाजी का दख़ल होता है, तब भी उनका लहजा कोई नर्म सुखन बनकर नहीं फूटता:

 उम्र भर साथ की थी बात कभी
 हट न पीछे तू अब निभाने में

 वह जब अपनी ग़ज़लों में लड़कियों से बात करती हैं तब भी उनकी बाबाकी साफ़ नज़र आती है:

खलबली कुछ इस तरह है लड़कियों में
अब नहीं तब्दील होना देवियों में

ज़ाहिर है उनकी ग़ज़लों का जो आस्वाद और भाषा की नफ़ासत है, आज की हिंदी ग़ज़ल उसी के लिए जानी और पहचानी जाती है। हिंदी कविता में ग़ज़ल हमेशा विरोध में खड़ी रही है, इसलिए सल्तनत के उस प्यार से अब तक वह वंचित है जिसका उसे पैदाइशी हक़ है। कहना न होगा कि हिंदी ग़ज़ल की परंपरा को और विस्तार देने में इस किताब का अपना मूल्य होगा। 

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