समय से संवाद करती हुई ग़ज़ल 'वीथियों के बीच'

15-03-2022

समय से संवाद करती हुई ग़ज़ल 'वीथियों के बीच'

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

समीक्षित पुस्तक: वीथियों के बीच हिन्दी ग़ज़ल
शायर: अभिषेक कुमार सिंह
प्रकाशक: लिटिल वर्ड पब्लिकेशन नई दिल्ली
वर्ष: 2022
मूल्य: 250 रु.
पृष्ठ:128

अभिषेक कुमार सिंह हिंदी ग़ज़ल के नए और संजीदा शायर हैं, लेकिन उनकी रचना पढ़ते हुए हमेशा ग़ज़ल की पुख़्तगी का एहसास होता है। उनके शेर हमें कौतूहल और विस्मय पैदा करते हैं, और दिल इस ऊर्जावान शायर का मुरीद बन जाता है। वीथियों के बीच इनका पहला ग़ज़ल संकलन है। इससे पहले पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा वह हिंदी ग़ज़ल को समृद्ध करते रहे हैं। इन दिनों जो हिंदी में ग़ज़ल लिखी जा रही है, उस भाषागत मतभेद से अलग उनकी भाषा में हिंदीपन का वह मिठास है जो दुष्यंत के शब्दों में हिंदी को हिंदी और उर्दू को उर्दू दिखलाई पड़ती है। 

उनके पास अपना हासिल किया हुआ अनुभव है और उन्होंने दुनियादारी देखी है। भेल में अभियंता की नौकरी करते हुए भी अपने अंदर की शायरी और संवेदनशीलता को ज़िन्दा रखा है, इसलिए वह कह पाते हैं कि:

ज़रूरत ख़त्म होने पर यह सहसा टूट जाता है
बँधा जो स्वार्थ से होता है रिश्ता टूट जाता है। 

उनकी यही अदा बालस्वरूप राही को पसंद आती है, और वह कहते हैं कि उनकी शायरी में कठिन वर्तमान का बयान है। 

सबसे बड़ी बात यह है कि अपनी शायरी में सत्ता साहूकार, शासक, और प्रभुत्ववर्ग को आड़े हाथ लेने के बावजूद उनका लहज़ा सख़्त नहीं होता। असल में वह गरजने और बरसने वाले शायर नहीं हैं। वह सिर्फ़ आईना दिखा कर भी अपना काम ख़त्म नहीं कर लेते, और न ही सिर्फ़ भयावह स्थिति उत्पन्न करने के पैरोकार हैं। उनका मक़सद लोगों को गुमराह करना या डराना भी नहीं है। उनकी स्थापना और कोशिश बस इतनी है कि आज के जो हालात हैं वह बदलने चाहिए। संकलन में उनके कई शेर इस सवाल को उठाते हैं। एक-दो ऐसे ही शेर देखे जा सकते हैं:

सत्ता लोलुप ख़्वाहिश का एक हिस्सा है
हर चर्चा अब साज़िश का एक हिस्सा है

फिर अगली ही ग़ज़ल में ऐसी साज़िश करने वालों से भी वह हमारा परिचय कराते हैं:

कोई तो बात है सत्ता की कुर्सियों में यहाँ
जो इस पे बैठ गया संविधान भूल गया

हिंदी ग़ज़ल में कई शब्द और कई स्थितियाँ ऐसी हैं जो सिर्फ़ उनके शेर में जगह पाती हैं। उन्होंने सीज़फ़ायर से लेकर ट्रैफ़िक और फ़्यूज़ बल्ब जैसे अँग्रेज़ी के शब्दों का भी हिन्दी में ख़ूबसूरती से प्रयोग किया है। वह भी इस तरह से कि ये ग़ज़ल की तासीर बन गई है। 

फ़्यूज़ उनके हो रहे हैं बल्ब सारे
इससे बेहतर तो मेरे टूटे दिए थे

कहना न होगा कि हिंदी ग़ज़ल जिस दिन गिनती के पंद्रह-बीस शायरों से आगे बढ़कर ग़ज़ल का नया मूल्यांकन करेगी, अभिषेक कुमार सिंह अपनी इस कृति के साथ सरे फ़ेहरिस्त होंगे। 


— डॉ. जियाउर रहमान जाफरी
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
मिर्ज़ा ग़ालिब कॉलेज गया, बिहार
823001
9934847941, 6205254255

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