फ़ज़लुर रहमान हाशमी की साहित्यिक विरासत
डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरीबेगूसराय के कवियों शायरों में दिनकर के बाद जिस व्यक्ति का नाम निर्विवाद रूप से लिया जाता है वह फ़ज़लुर्रहमान हाशमी हैं। वह उर्दू हिंदी और मैथिली के महत्वपूर्ण लेखक तो थे ही, अँग्रेज़ी और संस्कृत का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था। बेगूसराय के भवानंदपुर गाँव में उन्होंने अपनी परवरिश पाई और अपनी ख़ूबसूरत लेखनी से उर्दू हिंदी और मैथिली भाषा के साहित्य को समृद्ध किया। वह विश्व के पहले मुसलमान थे जिन्हें मैथिली में साहित्य अकादमी का अवार्ड मिला। साहित्य अकादमी भारत सरकार के पूरे पाँच वर्षों तक वह सलाहकार रहे। साथ ही साहित्य अकादमी के पुरस्कार निर्णायक समिति के सदस्य भी रहे। साहित्य अकादमी की तीन महत्वपूर्ण पुस्तकों मीर तक़ी मीर, फ़िराक़ गोरखपुरी, और अबुल कलाम आज़ाद का मैथिली में अनुवाद किया। मीर तक़ी मीर की साहित्य अकादमी की जहाँ अँग्रेज़ी की पुस्तक थी वहीं अबुल कलाम आज़ाद उर्दू, और फ़िराक़ गोरखपुरी हिंदी में प्रकाशित थीं। हिंदी में रश्मिरथी जहाँ उनका खंडकाव्य है; वहीं ’मेरी नींद तुम्हारे सपने’ उनकी ग़ज़लों का संग्रह है। उन्होंने भगवत गीता का भी उर्दू में अनुवाद किया था, तथा ’शापित कर्ण’ नामक खंडकाव्य की रचना की। ’हरवहाक बेटी’ और ’निर्मोही’ उनकी मैथिली कविताओं का संग्रह है। फ़ज़लुर रहमान हाशमी को मिथिला यूनिवर्सिटी ने आचार्य की उपाधि दी थी; उनकी साहित्य साधना पर कम से कम दो छात्रों ने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वह आकाशवाणी दरभंगा के नियमित वार्ताकार थे। वह पहले ऐसे लेखक थे जिनकी रचना सूरदास और उनकी शायरी को आकाशवाणी पटना ने अपने उर्दू प्रोग्राम में दस बार से ज़्यादा प्रसारित किया था। श्री हाशमी की कविता ’थरमसक चाय’ मैथिली के दशम वर्ग के पाठ्यक्रम में शामिल है। उनकी कविताएँ इंटर और ग्रेजुएट के पाठ्यपुस्तक में भी पढ़ाई जाती हैं। फ़ज़लुर्रहमान हाशमी को मुशायरे के बेहतरीन संचालक के तौर पर भी जाना जाता है। मुशायरे में उनके मौजूद रहते हुए शायद ही कोई आयोजन उनके संचालन में न हुआ हो। भाषा पर उनका ज़बरदस्त अधिकार था। इस्लाम, हिंदू, ईसाई सभी मज़हब की गहरी जानकारी उन्हें थी। उनकी तक़रीर जब शुरू होती थी तो आने-जाने वाला मुसाफ़िर भी रुक जाता था। हिंदी में उन्होंने जहाँ व्यंग्य प्रधान कविताएँ अधिक लिखी हैं, वहीं उर्दू में उनकी शायरी हालत-ए-हाज़रा से मुतासिर है। मैथिली कविताओं में उन्होंने पौराणिक संदर्भों का इस्तेमाल अधिक किया है।
श्री हाशमी सच्चे भारतीय थे और क़ानून के बड़े पाबंद थे। उनकी शनाख़्त काफ़ी दूर तक थी। हरिवंश राय बच्चन और मैथिलीशरण गुप्त ने उनकी कविताओं पर भूमिका लिखी थी, तो इंदिरा गाँधी ने उन्हें एक पहचान पत्र देते हुए लिखा था कि वह उन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानती हैं। अली मियां नदवी और वली रहमानी अक़्सर अपनी बातों में उनका ज़िक्र किया करते थे। क़ानून के वह ऐसे पाबंद थे कि रेलवे के मुशायरे में भी प्लेटफ़ार्म से गुज़रने के लिए टिकट ले लेते थे। नेपाल के कवि सम्मेलन में जब लौटते हुए उन्होंने जब बॉर्डर पुलिस से एक नेपाली घड़ी ले जाने की इजाज़त माँगी तो बॉर्डर पुलिस ने उन्हें यह कहकर अपनी कुर्सी बढ़ा दी जहाँ लाखों करोड़ों की चीज़ें तस्करी कर ली जाती हैं और आप सिर्फ़ एक घड़ी लेने के लिए इजाज़त ले रहे हैं।
श्री हाशमी का घराना भी बड़ा पढ़ा लिखा था ’नदीम’, ’कारवां’, ’एक-एक क़तरा’, ’दूसरा मत’ जैसी पत्र पत्रिकाएँ उनके घर से प्रकाशित होती थीं। उनमें से कुछ का प्रकाशन अभी भी जारी है। उनकी बेटियाँ, बेटे, और भाई भी शायरी करते हैं। घर का पढ़ा-लिखा और साहित्यिक माहौल है। वह जब तक ज़िंदा रहे अंत समय तक लिखते रहे। उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले जो ग़ज़ल लिखी थी उसमें भी मौत का ही ज़िक्र है वह पंक्तियाँ इस प्रकार थीं –
ज़माने को कलंकित कर गया हूँ
मिला भाई तो उससे डर गया हूँ
नहीं अनुभूति है जीवंत मेरी
मुझे लगता है जैसे मर गया हूँ
श्री हाशमी उर्दू में बीसवीं सदी और गुलाबी किरण के नियमित लेखक थे उनका बाल साहित्य भी ग़ज़ब का था। हिंदी उर्दू की तमाम बाल पत्रिकाओं में वह नियमित तौर से लिखते थे उर्दू में उनका यह हम्द स्कूलों में पढ़ा जाता है–
ज़ुबान में पार्क में यार अब असर दे
हॉट संगीत सख़्त भी तो मोम कर दे
शबे तारीक से घबरा रहा हूँ
मेरे यारब मुझे नूरे नज़र दे
श्री हाशमी की ग़ज़लें भी कम लोकप्रिय नहीं है। हिंदी उर्दू में तो ग़ज़ल वो लिखते ही थे; मैथिली में ग़ज़ल लिखने की शुरुआत भी सबसे पहले उन्होंने ही की। उनकी ग़ज़लों की भाषा जहाँ आम फ़हम होती थी वहीं उसका असर इतना ज़्यादा था कि हर आदमी जो जीवन से थका हुआ है, बेचैन है, परेशान है, वह उनकी शायरी में जगह पाता है। देश की परिस्थितियों का वर्णन उनकी ग़ज़लों में प्रमुखता से हुआ है। उनकी शायरी में हर वह दर्द शामिल शामिल है जिसे एक आम आदमी अपनी ज़िंदगी में महसूस कर सकता है। उनके कुछ शेयर देखे जा सकते हैं–
साया भी तो हट जाता है हर रात को देखो
जब आप मेरे पास तो दूजा नहीं होता
ग़ैर को देखते हो बहुत ग़ौर से
अपनी जानिब भी मुड़ मुड़ के देखा करो
आज रोटी के साथ है सब्ज़ी
घर में मेरे बहार आई है
ग़म में जो लोग मुस्कुराना सके
ज़िंदगी के क़रीब आ न सके
अपनी क़िस्मत से यार आई है
उनके घर से पुकार आई है
दिल मेरा तोड़ कर कहाँ तस्कीन पाएगा
रो देगा अगर आईने का ज़िक्र आएगा
न देखा यान में लंगर कहाँ है
मुझे तो हौसला है डर कहाँ है
हम तुम्हारे क़रीब आएँगे
अपना दुखड़ा नहीं सुनाएँगे
ग़रीबी एक चादर है फटी सी
इसी कारण लगी है दिल लगी सी
वक़्त का कुछ रुख़ बदलना चाहिए
एक दीपक बनकर चलना चाहिए
अज़्म जिसका जवान होता है
आदमी वह महान होता है
यह तो दरख़ास्त की शोभा है केवल
कहीं व्यवहार में सादर कहाँ है
जब से सर से गुज़र गया पानी
अपनी आँखों का मर गया पानी
अपना ग़म मुझको सबसे प्यारा है
जिसने सौ बार मुझ को मारा है
जिनको संसार में सँभलना है
साथ मेरे ही उनको चलना है
मेरा तो काला ही काला
अपना उजला दामन देख
कहना न होगा कि श्री हाशमी में जो प्रतिभा थी वह प्रतिभा कम लोगों में देखने को मिलती है। एक छोटे से गाँव में पल-बढ़कर और रहकर उन्होंने अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई या उनके निरंतर और मज़बूत लेखनी से ही संभव हो सका है।
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