फिरती है 

01-11-2021

फिरती है 

डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मार डालेगी वो ज़ंज़ीर लिए फिरती है 
एक लड़की मेरी तस्वीर लिए फिरती है 
 
जिसकी चाहत थी हर इक चीज़ मिली है उसको 
हाथ में ख़्वाब की ताबीर लिए फिरती है 
 
हो जो मुमकिन तो बचाकर रखो अपनी बाँहें 
ये सियासत अभी शमशीर लिए फिरती है 
 
जिसका चाहे वो नशेमन को उड़ा कर रख दे 
ये हवा बाप की जागीर लिए फिरती है 
 
शहर के मोड़ पे बैठा है कलंदर अब तक 
एक दुआ है अभी तासीर लिए फिरती है 
 
हर क़दम पर नई उलझन है मुसीबत है खड़ी 
ज़िन्दगी कितनी गिरहगीर लिए फिरती है 

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